विश्व बापू | Vishv Bapu
श्रेणी : पत्र / Letter
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विश्व बापू
दराष्ट्रगगन का विशुद्ध प्रकाश, कहाँ अकलइ সনু चलागया 7
ओर फिर नित्यही बापू के विपयमे कुछ न कुड लिखता ही रहा ।
इस पुस्तक का प्रथम सस्करण 'राष्ट्रमाता कस्तूर था? के नाम
से प्रकाशित हो दी चुका था । अब जो कुछ “वाप! के विषय मे
लिखा है ! उसे भी इसी पुस्तक में सम्मिलित करके अब इस
पुस्तक का नाम “विश्व बापू? ही रख दिया है।
आज वापू ससार में नहीं हैं ! किन्तु उन्होंने 'मुके जो छझुछ
दिया है? चह मेरे हृतय में है। उसी के फल स्वरूप ये! सदैव
इस वात का, ध्यान रखतः हूँ ! कि 'मेरी ओर से किसी को भी
किसी प्रकार से कष्ट न ॒पहुँचे। लेकिन नीतिः किसी भी
अवस्था सें सहन नहीं कर सकता |
तभी तो आज मुझे-फोई 'ढस्भी? सममता है, कोई पाखडी?।
कोई 'क्रोधी? कोई 'निकस्माः और न जाने क्या क्या । किन्तु
मुझे इससे क्या ? शुभ कर्म का फल सदेव शुभ है। जो शुभ
है | वही शिव है ! ओर जो शिव है वद्दी सत्य है । घस इसी
(विश्वास? को लिये हुये में अनेकों आपदार्ये सहता हुआ अपने
उद्देश्य की ओर बढ़ता रहा हूँ ! बढ़ रहा हू । और बढ़ता रहूंगा।
भूमिका समाप्त हद । केवल एक दी ! वाक्य बापू को और
समर्पण द ।
(कारागार की अंधेरी और छोटी कोठर सें भयकर निशा के
वक्तस्थल पर ताण्डब नृत्य करने वाले रुद्र | ऊँची ऊँची पत्थर
की विशाल “चहार दीवारी? से घिरी हुदै, लोहे की चसच्माती
हुई प्रोद शल्लाकाओं के वीच, गले मे तोक हाथों में हथकड़ी पैरों
में घेड़ी पदिने हुए सी, एक जगह न ठहरकर लाल लाल आँखों
से अगारे वरसा, भीपण दहाड़ के साथ चक्कर काटने चाले शेर !
[ सचरह |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...