वैदिक विज्ञान | Vaidik Vigyan

Vaidik Vigyan by विश्वनाथ विद्यालंकार - Vishwanath Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋषि दयानन्द की भाष्यरौली - ९ की भष्यिरौली के अध्ययन से निन्न तीन परिणामों पर पहुंचते हैं । ( क ) पहिले २ शब्द का प्रकृति और प्रत्यय के आधार पर मूल अथं जानकर-- (ख) फिर वेद में आये विशेषणों और प्रकरण के आधार पर. उसका अथ निधारित करके-- (ग) वैदिक साहित्य के आधार पर उसका निश्चित रूढ़ व योगरूढ़ अर्थ जानकर मन्त्र की व्या- ख्या ऋषि दयानन्द करते हे । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो ऋषि की भाष्य- शैली की प्रथम विशेषता यह हैः- (१) कि वे वेदिक शब्दों को यौगिक मानकर भाष्य करते हैं | वैदिक शब्द अपने वाच्य अथं की योग- बृत्ति ( प्रकृति, प्रत्यय, विवेचन ) से वताते हँ । अतः इनको यौगिक मानने पर ही उनका वास्तविक अथ जाना जा सकता है | लौकिक दृष्टि में तो कमज़ोर को बलदेव, क्रोधी को सो मकीत्ति ओर अन्धे को नैनसुख कहा जा सकता है ¦ परन्तु गैदिक दृष्टि में कमल को तबतक पंकज नहीं कहा जा सकता है, जबतक (पंक+ज ) कि ५ कीचड़ से पेदा न हुआ हो । वैदिक दृष्टि में शब्द अपने वाच्य अथ को प्रकृति तथा प्रत्यय के आधार पर बताते हैं। इसलिये वेदिक शब्द यौगिक ही हे । खामीजी महाराज की नेदिक शब्दों को यौगिक समने की शैली मे यास्क › पतंजलि मुनि तथा अनेक ब्राह्मण” ग्रन्थकारों की भी अनु- मति है (२) गैदिक शब्दों के यौगिक मान लेने पर एक प्रश्न हो सकता है कि इस तरह से एक शब्द के अनेक प्रभे हो जाते हैं ओर शब्द का कोई भी निश्चित সখী नहीं रहता है। खामीजी की भाष्य शैली की दूसरी १ देखो निरूक्त १-१२ २ देखो अष्टाध्यायी ३-३-१ सूत्र पर कारिकां ३ ““ शतपथ ब्राह्मण १४-८-४-१ पे का० ६.५. श्रा्ण व्याख्या करते हुए स्वतः शब्द की यौगिक व्याख्या करते हैं চে यि ~>“ विशेषता से इसका समाधान करिया जा सकता है, वहं यह है कि हमें केवल प्रकृति तथा प्रत्यय लभ्य अथे से ही सन्तुष्ट न रहना चाद्ये । अपितु प्रकरण तथा विशेषणो का ध्यान भी करना चाहिये । किसी विशेष पदाथं या देवता का निखेय यौगिक वृत्ति से कर लेना ही उचित नहीं ओर रूढि अर्थो को मान लेना उचित है, परन्तु विशेषणों के आधार पर, विशेष्य या देवता का खय॑ नि्शंय करना चाहिये । साथ ही आगे पीछे के प्रकरण का भी ध्यान रखना चाहिये । निस्सन्देह्‌ इस शैली से किसी भी काव्य के अर्थ किये जा सकते हैं, और किये जाने चाहिये । प्रकरण” के आधार पर अथ करने का क्‍या तात्पये है ? इसके लिये एक उदाहरण लीजियेः--रमे भोजन कर रहा हूँ, बीच में मुझे नमक की आवश्य- कता पड़ती है, में अपने सहायक ( 11019०० ) से संस्कृत भाषा में कहता हूँ कि “सेन्धव मानय”” । यदि वह उस समय घोड़े को ले आवे तो में सममभूंगा कि वह शब्द के अर्थ को तो जानता है, परन्तु पूर्ण रूप में नहीं--उसको में बुद्धिमान्‌ नहीं कह सकता हूँ । १ देखो परम लघु मजूसा शब्द शांक्ते-विचार प्रकरण १४ पृष्ठ पर तद्‌ उक्तम्‌ हरिणा-- संयोगो विप्रयोगइच साहचय्य॑विरौधितां । अर्थैः प्रकरणं लिङ्ग शब्दस्यान्यस्य संन्निधिः । सामथ्यं मौचिती देशः कारो व्यक्तिः स्वरादयः । शब्दार्थस्यानवच्छेदे . विशेषस्म॒ तिहेतवः । सैन्धवमानये स्यादौ प्रकरणेन तत्‌ । देखो साहिव्य-दपंण द्वितीय परिच्छेद व्यजना- प्रकरण मे यही है-- प्रकरण का उदाहरण “सवं जानाति दैवः इति देवो भवान्‌ ८ वक्ता तथा श्रोताकी बुद्धिस्थता प्रकरण ) २ उदाहरणार्थं देखिये ऋषि दयानन्द कृत ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका के भाप्यकरण शंकासमाधानादि विषय प्रकरण को तिनाज्नेन्द्रशब्दो विशेष्यतया गृहीतो मित्रादीन च विशेषणतया । अन्न खलु विशेष्यो अग्निः शब्द इन्द्रादीनां जिशिषणानाम्‌ । इत्यादि ।




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