जनक नंदिनी नाटक | Janak Nandini Natak
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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আলে,
- यही कि---
रामपर खकती महीं ह कामरूपी भाग की ;
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रामके पूकार मे शकती हे कखे नाग क|
नाशही करना मेरा जो जापको दरकार है;
तो मुझे जाना वहां फिर हर तरह स्वाकार हे,
पाप--चुप, चुप, कायर ! भोरू !! नीरसात्मा !?! क्रोध!
कोध- ( उत्तरम सिर सका टेना ) |
पाप- लोभ)
लोभ--( सिर काना )।
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याए-- मोह !
मोह--( सिर कुकाना )।
पाप- अ्कार !
अहंकार--( सिर काना ) |
याप--( विगढ़कर ) हैं! सबके खब बागी. दुराचार । घिक्कार
तुम सबपर धिक्कार ।
एक प्राणी पर विजय पाने की भी शक्ती नहीं ;
हो गया नि হিল तुम्हारी मुझपे कुछ भक्ती नहीं |
क्रोध--भगवन ! क्षमा क्री जिये । ब्रह्माने यह लिंखा ही नहीं किंतु,
क्या करें हम अनाथ हैं--
क्रोधको करती हें शीतल रास की शीसक छटठा ;
लोभ--- लोभको हरती है पलमें राम की गम्भोरता ।
मोह-- मोह खुद हो जामे मोहित देखकर उसकी प्रभा;
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