जनक नंदिनी नाटक | Janak Nandini Natak

Janak Nandini Natak by शैदा -Shaida

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शक € আলে, - यही कि--- रामपर खकती महीं ह कामरूपी भाग की ; স্‌ ৬ ৬ ই ক रामके पूकार मे शकती हे कखे नाग क| नाशही करना मेरा जो जापको दरकार है; तो मुझे जाना वहां फिर हर तरह स्वाकार हे, पाप--चुप, चुप, कायर ! भोरू !! नीरसात्मा !?! क्रोध! कोध- ( उत्तरम सिर सका टेना ) | पाप- लोभ) लोभ--( सिर काना )। & याए-- मोह ! मोह--( सिर कुकाना )। पाप- अ्कार ! अहंकार--( सिर काना ) | याप--( विगढ़कर ) हैं! सबके खब बागी. दुराचार । घिक्कार तुम सबपर धिक्कार । एक प्राणी पर विजय पाने की भी शक्ती नहीं ; हो गया नि হিল तुम्हारी मुझपे कुछ भक्ती नहीं | क्रोध--भगवन ! क्षमा क्री जिये । ब्रह्माने यह लिंखा ही नहीं किंतु, क्या करें हम अनाथ हैं-- क्रोधको करती हें शीतल रास की शीसक छटठा ; लोभ--- लोभको हरती है पलमें राम की गम्भोरता । मोह-- मोह खुद हो जामे मोहित देखकर उसकी प्रभा;




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