नाट्य निर्णय | Natya Nirnay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
है, दोनों परस्यर सहयागी एवं सइकारो हैं। अस्तु, हम भी
यदहो बात आते जियय के सम्बन्ध में कह सकते हैं । यद्यपि कुछ
लोएं का विचार ऐसा भी है कि प्रथम सरभवतः नाय्य-कला
की ही सत्ता रही होगी और आगे लोग नाटक-कौतुक फरते रहे
होगे (न्यूनाथिक रुप में ही सदी) उन्हीं के आधार पर उनके
सुब्यचस्थित एयं खुष्ट रूप देने के लिये उनके लिये उपयुक्त
सियमों की कछरना की गई होगी, और फिर उन नियर्मो का
पालन करके नाठ्य-कला में अमीष्टोचित विक्रासाश्नति के लिये
पंरिमाजन एवं परिशोधन किया गया हीगा। बस इसी प्रकार
नाटक को नियर्मो से निय॑त्रित किया गया होगा। किन्तु कुछ
लोग का यह भी कहना है कि नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति या रचना '
प्रथम ही हुई और ब्रह्मा जी ने इसकी उत्पत्ति की, उसी फे ~
आधार पर नाट्यकला का सिकास एयं विकास हुआ। इसी लिये
नाटवशाख के ईश्वरीय या देवी ज्ञान मान कर पंचम चेद भी
कहा गया है। अब यदि हम विकास-सिद्धान्त ( 116०५ व
12१01५८० ) के अनुसार तथा ऐतिहासिक प्रमाणों एवं
पत्यक्ष प्रमाणों फे भी आयार पर विचार करने हैं तो ज्ञात
होता है कि श्राज्कल जिस रुप में नाट्य शास्त्र, नांटक-प्रैथ, एवं
नाट्य-इला के कौतुकादि मिलते दै उसमे विकास-सिद्धान्त सवे
प्रकार दी घटित हो जाता है, ओर ऐसा जान पड़ता है कि
इनमें क्रमशः उत्तरोत्तर बिकास होता चला आया है, और परि-
चुन का नूतन नर्तेन सद्दा ही इनके क्षेत्र था रंग संच पर
होता रहा है तथा अद भी होता जा रहा है।
॥
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