श्री स्वामी रामतीर्थ | Sri Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत.का भविष्य. ~ & कि दुवे्तता, बीमारी ( सेम ) तथा सत्यु फो बुला लेती है । मक्खन, चीनी रर शास्ता (517८0) जसे कारवेनट्स पदारथ (००१०९९8). जे केवल फेफड़ों के लिये ईघन का काम देते हैं किन्तु पद्ठों और दिमाग को किसी प्रकार से. पुष्टि नहीं: देते हैं, उनको सब से अधिक महत्व -दिया जाता है। और- इस का परिणाम यद होता है कि श्रालस्य, निद्रा-तन्दरा और थकावट का रहना श्रनिवायथे दो जाता हैः । ज्ञान ( विक्ञान- शास्त्र, विद्या) हमारे भोजन के विषय पथ दर्शक होना चाहिये भारतवर्ष के साधू इस देश के लिये एक अद्भुत और श्रद्धितीय दृश्य है। जिस प्रकार तलेया के पानी पर हरी काई जम जाती है, वैसे भारत वं म साघु फैले हुए हैं। इस समय ये पूरे बावन लाख की संख्या में हैं। इन में से कुछ साधु ते निःसन्देद खुन्दर कमल है जे तक्तेया बा सरोवर की शोभा बढ़ा रहे हैँ, किन्तु अधिक शरश इन में रोगोत्पादक .काई रूपी मल्न है। ज़रा जल को बहने दीजिये, मलुष्यों में जीवन संचार होने दीजिये, काई रूपी मल शीघ्र वह जायया। ये साधु भार- तवर्पीय इतिहास-फे यत श्रवनत- काल के स्वाभाविक परि- णाम ই। परन्तु आज कल खुधार का साधारण प्रभाव जितना गृहस्थियों के स्वभाव थ रुचियों को बदल यहा है, उतना साधुओं में भी परिवतेन पेदा कर रहा है। अब ऐसे साधु , उत्पन्न हो रहे हैं कि जो राष्ट्रीय दत्त पर जोंक और आकाश- बेल ( प्रायनाशक ) बने रहने-के स्थान पर मन और शरीर से यदि अधिक महीं तो इस दुक्त की खाद बननें के इच्छुक हैं। मेहनत वा मजदूरी के आदर का भाव तथा निष्काम कम का ` धर्मैःजो ्राजतेक लाखो गतामक्घ का जवानी जमा-खचै था, - श्रव मगवान्‌ रुष्ण' की भूमि मे लाचार थोड़ा च बहुत. चतो ` म ्ाताश्रचमव होर्दाहै। .. ` 8 = ४४




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