बुंदेलखंड का संक्षिप्त इतिहास | Bundelakhand Ka Sankshipt Itihas

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Bundelakhand Ka Sankshipt Itihas by गोरेलाल तिवारी - Gorelal Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारंभिक इतिहास ५ हुपद के पुत्र शिखंडो को व्याही थी! पर यह पुरुषत्वहीन था । इसी से हिरण्यवर्म्मा और राजा द्वुपद में युद्ध भी हुआ था, पर पीछे से सुलह हो गई थो। इसके पश्चात्‌ इस दशाणी देश में राजा सुधर्मा का नास मिल्तता है। राजा सुधर्मा भार पांडव-सेनापति भीमसेन से पूर्व-दिग्विजय के समय युद्ध हुआ था। इसमें भीमसेन की विजय हुई थी । इतिहासज्ञ विद्वानों ने महाभारत का समय वि० सं० से लगभग ३००० वर्ष पूर्व माना है। यही मत यहाँ पर बिना विवाद किए मान लेना उचित है। ८--कर्मों के अनुसार जातिभेद आय्योँ में पहले से द्वी रहा है । आाय्यों की जे शाखा फारस देश में रहती थी श्रौर जिसे आय्ये लोग भ्रसुर कहते थे उसमें भी जातिभेद पाया जाता है। वहाँ पर न्ाह्मणों का काम करनेवाले अथृव, क्षत्रिय अर्थात्‌ राजाओं का काम करनेवाले राथेर्थ, वैश्यो का कम करनेवाले वालिम श्रौर श्रो का काम भ्र्थात्‌ सेवा करमेवाल हु टौ कहलाते थे। इससे ज्ञान पड़ता है कि कर्मों के अनुसार समाज के चार विभाग बहुत पुराने हैं। परंतु वैदिक काल में विवाह आदि संबंध के लिये फाई बंधन न थे। महाराज रामचंद्र के समय आय्ये लोग अनाय्योँ से बहुस द्वेष रखते थे। परंतु महाभारत के समय में यह द्वेष बहुत कस हा गया था और आर्य्य लोग अनाय्य जाति की कन्याओं से ब्याह करने में भी काई आपत्ति न करते थे। इन विवाहो के उदाहरण बुंदेलखंड में ते कम परंतु बाहर बहुत पाए ज़ाते हैं। शांतनु का विवाह एक मछली मारनेवाले धीमर की लड़की के साथ हुआ था। यह घौमर निषाद था। मत्स्य देश के राजा विराट की उत्पत्ति भी इसी प्रकार थी । <--जाति-भेद पहले कर्मों के भ्रनुसार ही था और बहुघा पिता का व्यवस्तय पुत्र सीखा करता था । इससे जाति का कर्म भी परं-




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