पाण्डव - पुराणम | Pandaw - Puranam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
577
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९)
क्षत्रिये स्वभावो प्रगट कर कृष्ने अजुंनको युद्धके निमित्त उद्यत किया' ।
परन्तु श्ुभचन्द्रके प्रस्तुत पराण्डवपुराणमे इस प्रकार उदेव नहीं है । वहां इतना मात्र कडा
गया दै कि कुरुक्षेत्रम दोनों सेनाओंके आजानेपर अर्जुनने सारथीसे रथ्सहित राजाओंका परिचय
पूछा। तदनुसार सारथीकेद्वारा धोड़ों व ध्वजाका निर्देश करते हुए भीष्मादिकोंका परिचय करा
देनेपर अर्जुन स्वयंह्दी युद्धके लिये उद्यक्त हो गया ।
पाण्डवपुराणान्तर्गत कथाका सारांश
प्रस्तुत ग्रन्थमें पाण्डबोंकी जिस रोचक्र कथाका वर्णन किया गया ह । वह हरित्रेंशपुराण
एवं उत्तरपुराण आदि अन्य दिगम्बर ग्रन्थों, हेमचन्द्र सूरिविरचित त्रिपष्टिशव्यका पुरुषचरित्र
एवं देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवपुराण आदि श्रेताम्बर प्रन्थों, तथा मद्दाभारत, विष्णुपुराण व चम्पू-
भारत आदि अनेक वैदिक ग्रन्थोरमेभी पायी जाती ह। सम्प्रदायभेद और प्रन्थकर्ताओंकी रुचिके
अनुसार वह अनेक घाराओंमें प्रवाह्षित हो गई दवै। उक्त कथा यहां यचपि प्रस्तुत ग्रन्यके अनुसारही
दी जा रही है, फिर भी टिप्पणोंद्वारा यथास्थान उसकी अन्य ग्रन्थोंसेमी तुलना की जायेगी।
पुराणका उद्गम
यहां प्रस्तुत पुराणकों उदृगमस्थान बतलछाते हुए कहा गया है कि जब चौंबिसवें तीथैकर
भगवान् महावीर स्वरामीक्ा समवसरण राजगृद्द नगरीक समीप वेभार पर्बृतपर आया था तत्र राजा
श्रणिक सपरिवार उनकी बन्दनाके छिये गय। वन्दन करके उन्होंन बीरप्रभुसे पर्मश्रत्रण किया ।
तपश्वात् उन्होंने गौतम गणघरकी स्तुति कर उनसे कुरुतरंशकी उत्पत्ति, उसमें उत्पन्न राजाओंका
परम्परा ओर कौरव-पाण्डवोक्रे जीवनचवृत्त आदिके जाननेकी अभिखापा व्यक्त की। तदनुसार
गौतम गणधरने कुर्वंश आदिकः विस्तारपूर्वक वणेन किया । वही पुराणार्थ पूर्वपरम्परासे छुम-
चन्द्राचार्यको प्राप्त हआ । इस प्रकार ग्रन्थकर्ताके द्वारा इस पुराणका उद्गम भगवान् महावीर
्रभुसे बतछाया गया है। यही पद्धति प्रायः समी दिगम्बर पुराणग्रन्थो्मे पायी जाती हैं।
१ गुरो पितरि पुत्ने वा बान्धवे वा धृतायुप्रे | वीतशङ्क परह्त॑व्यमितीहि क्षत्रियत्रतम् ॥
बान्धवा जान्धवास्ताबद्यावत् परिमवन्ति न । परामवङृतरतूचचैः शीषेच्छेय्या भुजावताम् ॥
वैश्वानरः करस्पश्ं मृगेन्द्रः श्वापदस्वनम् । क्षत्रियश्च रिपुक्ेपं न क्षमन्ते कदाचन ॥
दे. प्र. पा. च. १३, २५-२७.
२ श. चे. पा. पु. १९, १७२१५७६.
३ एक पुरुषके आश्रित कथाको चरित्र ओर तिरेसठ शल्ाकापुरुषोंके आश्रित कथाकों पुराण कहा
जाता है । ये दोनोंद्दी प्रथमानुयोगमें गार्भत हैं । (र, श्रा, प्रभाचन्द्रीय टीका) २-२
४ हरिवंशपुराण ( २०६२ ) और उत्तरपुराण ( ७४-३८५ ) में वेमारके स्थानमें विपुलाचल तथा
पृज्यपादसूरिविरचित निर्वागभक्ति (१६) में वेभार परवेतकाददी उल्लेख है।
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