शिक्षा का आदर्श | Shiksha Ka Aadarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दै मेरी व्याज्यान-माला |
सिरे से दूसरे सिरे तक फैल गया था। हिन्दू राज्यों का
विरोध मिट खुको था। ऐसे संमय में साधन रहित वीर
शिवाजी का खड़ा होना और গীত जैसे बादशाह के
नीखा दिखा देतां इस बात का जाज्वल्यमान प्रमाण है कि देश-
कालखासुसार शिक्षा और शंक्ति सम्पन्न मनुष्य असम्मप का भी
सम्भव कर सकता है | संसार एक युद्धछेत्र है। उस क्षेत्र में
घही पुरुष विजयी होगा जे! काल की गति के अनुखार शिक्षा
सम्पन्न होगां। पुराने जज्र साधन किसो काम नहीं आ
सकते ; वे केवल स्यूज़ियम में रखने लायक रह जाते हैं ।
इसलिंये सोचो और विचार करे।। यदि हमारी पाठशालाओं
में संस्कृत भाषा द्वारा पाश्चात्य ज्ञातियों का इतिहास, पदार्थ
घिजान, राजनीति, अर्थशारत्र, रसलायनशासत्र, आदि विषय
पढ़ाये जाते ; तथा साथ ही अपना साहित्य, अपने आदरशोें
पुरुषों के जीवनचरित्न, अपने देश का गौरव, भारतीय
यद्यों को सिललाया जाता तो हम कभी किसी जाति से
पीछे न रहते । क्या दूसरों से कुछ सीखना लल्ला को
बात है? कदापि भहीं। अगरेज़ संस्क्ृत-साहित्य पढ़ हमारे
गुणां से लाभ उडा रहे है ; जमेने। ने संस्कृनयुड विधा के प्रयो
का मान किया है; फ्रांसीसी हमारे दर्शनों के अनुवाद अपनी
भाषा में कर फ़ायदा उठा रहे हैं, उसके विपरीत हम केवल
भ्याय, ष्याकरण ओर बेदान्त का ही गला घोटने में मस्त हो रहे
हैं। बस, उसी से हमें जन्म भर छुट्टो नहीं। जिस इंगलेंड में
एक शताब्दी पहले लेटिन और प्रीक भाषाओं से अनमिक्ष पुरुष
विद्वान नहीं समझा जाता था, वहाँ आज विज्ञान ने पैर अमाया
है। विकासवाद मे अपनी प्रभुता शित्ता पर कर ली है; वह
धीरे घीरे सादित्य के प्रत्येक अंग में घुस गया दै । अमनी की
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