श्री श्री चैतन्य - चरितावली भाग - 5 | Shri Shri Chetany-charitavali Bhag - 5

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Shri Shri Chetany-charitavali Bhag - 5 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) पीड़ा प्रायः होती है, उरी अनुभवकरे आधारपर मँ कह सकता हू कि , उनकी पीड़ा ননী হী মস্ত थी, वे उसके कारण वेचेन ये । उन्हें कहीं लक्ष्य बनाकर जाना-आना तो था ही नहीं | उनकी मौज आती फिर पीछे लोट जाते | मेरा तो लक्ष्य अति शीघ्र श्रीवदरीनारायण पहुँचना था, अतः वे महात्मा एक खानपर डट गये। में रामपालजीके साथ उनकी चरण-वन्दना करके आगे चल पढ़ा। में उनके दुःखकों किसी प्रकार बा ही नहीं सकता था; जानेकी शीघ्रताके कारण में उनके साथके लिये नहीं रुक सका | रास्तेमें में सोचता था--'ये महापुरुष कहते हैं, अभी नहीं, अभी कुछ देरी है। मुझे अब क्या देरी है। नीचे कुछ लोगोंका सझ्लीच अवश्य है | पहाढ़पर आप-से-आप छुँगोटी उतर पढ़ेगी, फिर चेश नहीं करूँगा | कौन जानता था कि लेंगोटीके साथ कम्बछ और विछोना-ओढ़ना भी रखना पड़ेगा। - पृज्यपाद श्रीडढ़ियाबाबा उन दिलों कासगंजमें पधारे हुए थे | सोरोंसे हम गंगाकिनारा छोड़कर उनके दशनोंके लिये गये । परस वाल्सल्य-स्नेह प्रकट करते हुए रामपालजीसे मेरी सभी छोटी-बड़ी बातें पूरी, मेरे पैरोमें बढ़ी-बढ़ी विवाइयोंकों देखकर उनका नवनीतके समान लिग्ध हृदय वात्सल्यल्ेहके कारण द्रयीभूत होने लगा । उन्होंने अत्यन्त ही स्नेहसे कह्दा--'मैया ! इतनी तितिक्षा ठीक नहीं । थोड़ा कम चला करो ।' किन्तु मैं तो इसे तितिक्षा समझता ही नहीं था | शीघ्र-से- शीघ्र श्रीवदरीनारायण पहुँचना ही मेरा लक्ष्य था | उन दिनो “कल्याणः का श्रीकृष्णाछु निकलनेवाला था। महाराज उसके डिये माँगे गये छेखों- की विधय-सूची पढ़वा रहे ये | ब्रीचसें ही आप कहने छगे--“अमुक विषयपर तो ब्रह्मचारीजी बड़ा अच्छा लिखते ।' किसी सत्सड्जी वन्तुने कक्--त्रह्नचारीजीने तो कलमसे लिखना अब छोड़ ही दिया है ।'




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