श्री श्री चैतन्य - चरितावली भाग - 5 | Shri Shri Chetany-charitavali Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३)
पीड़ा प्रायः होती है, उरी अनुभवकरे आधारपर मँ कह सकता हू कि ,
उनकी पीड़ा ননী হী মস্ত थी, वे उसके कारण वेचेन ये । उन्हें कहीं
लक्ष्य बनाकर जाना-आना तो था ही नहीं | उनकी मौज आती फिर
पीछे लोट जाते | मेरा तो लक्ष्य अति शीघ्र श्रीवदरीनारायण पहुँचना
था, अतः वे महात्मा एक खानपर डट गये। में रामपालजीके साथ
उनकी चरण-वन्दना करके आगे चल पढ़ा। में उनके दुःखकों किसी
प्रकार बा ही नहीं सकता था; जानेकी शीघ्रताके कारण में उनके साथके
लिये नहीं रुक सका |
रास्तेमें में सोचता था--'ये महापुरुष कहते हैं, अभी नहीं, अभी कुछ
देरी है। मुझे अब क्या देरी है। नीचे कुछ लोगोंका सझ्लीच अवश्य है |
पहाढ़पर आप-से-आप छुँगोटी उतर पढ़ेगी, फिर चेश नहीं करूँगा | कौन
जानता था कि लेंगोटीके साथ कम्बछ और विछोना-ओढ़ना भी रखना पड़ेगा।
- पृज्यपाद श्रीडढ़ियाबाबा उन दिलों कासगंजमें पधारे हुए थे |
सोरोंसे हम गंगाकिनारा छोड़कर उनके दशनोंके लिये गये । परस
वाल्सल्य-स्नेह प्रकट करते हुए रामपालजीसे मेरी सभी छोटी-बड़ी बातें
पूरी, मेरे पैरोमें बढ़ी-बढ़ी विवाइयोंकों देखकर उनका नवनीतके समान
लिग्ध हृदय वात्सल्यल्ेहके कारण द्रयीभूत होने लगा । उन्होंने
अत्यन्त ही स्नेहसे कह्दा--'मैया ! इतनी तितिक्षा ठीक नहीं । थोड़ा
कम चला करो ।' किन्तु मैं तो इसे तितिक्षा समझता ही नहीं था | शीघ्र-से-
शीघ्र श्रीवदरीनारायण पहुँचना ही मेरा लक्ष्य था | उन दिनो “कल्याणः
का श्रीकृष्णाछु निकलनेवाला था। महाराज उसके डिये माँगे गये छेखों-
की विधय-सूची पढ़वा रहे ये | ब्रीचसें ही आप कहने छगे--“अमुक
विषयपर तो ब्रह्मचारीजी बड़ा अच्छा लिखते ।'
किसी सत्सड्जी वन्तुने कक्--त्रह्नचारीजीने तो कलमसे लिखना
अब छोड़ ही दिया है ।'
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