नियमसार प्रवचन | Niyamasar Pravachan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Niyamasar Pravachan  by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

Add Infomation AboutManohar Ji Varni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गाभा ७७ ९१ किसी पर्यायरूप नहीं हूं, उन पयायोके मेदरूप नी हं, ये सव व्य॒बहारसे बाहदष्टिके तापसे निमित्तनैमित्तक भावसे होने बाली मायां है । जव में अपने प्रदेशकी दृष्टिसे अपनेको निह्ारने चला तो बद्दां देखा कि में शुद्ध जीवास्तिकाय हूं | इंस क्षेत्रमें अन्य, कुछ भी विकार नहीं है। जब उस, परिणमनकी निगाह लेकर देखने चला तो मेरे ही स्वरूपे मेरी कौरण सेरेमें जो अर्थपरिणमन है वह भी एक अर्थपरिणमन्तोंका आधार- भून सामान्य परिणमन मात्र. हुआ, ऐसा यह में शुद्ध जीवद्रव्य हूं । जब में भावदृष्टिसे अपनेको निहारने चला तो केवल ज्ञानानन्दभावरूप मैं हूं, अन्य छुछ में नहीं हूं | ऐसा में शुद्ध जीवतत्त्व हूं । ` विभावविविक्तत्ता- इस जीवके उन -नारक জ্সাহিক্ক शराश्च वोंके कारणभूल रागद्वेष ` मोदं व्यवहारसे दै, परमार्थसे नहीं है, अर्थात्‌ मेरे रबंरूपसे रचे हुए वे भाव नहीं हैं । स्वरूपमें रचे हुए भाव वे हैं जो श्रनादि अनन्त अह्ेतुक नित्य प्रकाशमान्‌ हैं ।यों ही समक लीजिए कि में तिर्य॑श्ध व्यञ्ञन पयाय नहीं हूं श्रौर तियंब्व ,भावरूप भी नहीं हूं । . तिय॑प्वपर्यायके योग्य जो मायासे मिला हुआ श्रशुभ कर्म होता है अशुभ भाव होता है वह मेरे स्वरूपमें नहीं है। सो न में तिय॑द्वभावरूप हूँ भौर ল দিখভ্ন पर्यायरूप हूं। ऐसा ही जानिए कि मनुष्य युके. योग्य जो परिणाम है उन परिणामोरूप भी में नहीं हूं और मनुष्यपर्यायरूप भी में नहीं हूं । ज्ञातीका अगाध गसन-- यह ज्ञानी अपने आपकमें भिना गहरा उतर गया है कि जेसे 'समुद्रके किमारे पर बैठे हुए पुरुषको बहुत नीचे मग्न होने वाले मनुध्यका क्या पता है, ऐसे ही इस तक्त्वसमुद्रके किनारे पर बंठे हुए बातूनी पुरुषको इस तत्त्वसमुद्रकी गहरारमें मग्न हुए ज्ञानीकी करतूतका क्‍या पता है ? मैं भलुष्यपेयायरूप भी नहीं हूं, इसी प्रकार देव पययरूप नहीं ह, देवपयोयमें होने वाते सरस, सुगंध पुद्गलद्रस्य शरीर स्कंपध ये भी मेरे स्व॒रूपमें नहीं हैं. और जिन भावोंका निमित्त पाकर ऐसी देव अवस्था मिलती हैं में उत्त भावों रूप भी नहीं हूं। यह में सवन्यञ्चन पर्यायोंसे परे शुद्ध चेतन्यस्वरूप मात्र हूं। में उन्त रूपों नहीं हूँ और उन रूपोंका कर्ता भी नहीं हूं। में सदा अपनी ही रचनाबोंकों किया करता हू । “मैं पुदूशलकी रचत्ावों रूप नहीं परिणम सकता। कारयिद्त्व॑विषयक् शंका-- इस तरह यहां तक ये दी शर्तें बतायी ই हैं कि में इन ठ्यञ्जन पर्यायोंरूप नहीं हैं, वेहोंसूप, शरोररूप नहीं हूं आर शरीरका कर्ता भी नहीं हूं। व यह्‌ वतला रहे है कि में ইন হাবীব काकराने वाला भी नहीं, पषिली दो वार्तोको सुनकर किती चिन्तमें ननि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now