पंचास्तिकाय प्राभृत | Panchastitkaya Prabhut
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श श्री पंचास्तिकाय प्राङ्रे
ছক कम्मं कुव्वदि जदि सो अप्पा वरेदि अप्याणं। कप तस्स फल अष्जदि अप्या इम्मं च
देदि पल || ६३ ॥
ओगाढ्गाढणिचिदों पोग्गलकायेहिं सब्वदों लोगो ) सुहभेहि बादरेहिं य शंद्ाण॑तेहिं विविधेि
अत्ता कुशदि समावं तत्थ गदा पोग्गला सभावेहिं | गच्छंति कम्ममाव॑ अश्णेणणागाहमवर्गाढा
जह पुग्मलदव्याणं बहुप्पयारेद्दि खंधण्पिव्वत्ती । अकदा परेड दिद्ठा| तह कम्मा्ं वियाणाहि ॥
जीषा पग्मलकाया अर्णोण्णायादमहरापडिबद्धा । काले विंजर नमाणा सुददुक्खं दिति रुऽजन्ति
तम्हा कम्मं कत्ता भावेण हि संजुदोघ जीबस्स । मोत्ताहू हवदि जीयो चेद्गमावेंण कममफलं
एवं क्ता भोक्ता होज्जं अप्पा सरोहिं म्मे । हिंडदि फरमपारं संसार मोहसंछएणो ॥ ६६॥
उवसंतखी प्ममे ही मग्गं जिणभासिदेश सम्ुवगदों | ण।|णाणुमग्गचारी णिव्याणपुरं वजदि
घीरो1। ७० ॥
एको चेव महप्पा सो दुवियप्पो तिलवखणो होदि । चदुचंकसणो भशिदों पंचग्गगुणप्पधाणों य
छक््क्रापक्कमजुत्तो उवउत्तो सत्तभड्भसब्भावों । अड्डासओ शवट्ठों जीवो दसट्ठाणगो भणिदो ॥
पयडिट्टिदिवणुभागप्पदेसबंधेहिं सब्वदो मुक््की | उड़्ढ गच्छदि सेसा विदिसावज्ज गदं जति
खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणू | इति ते चदुव्वियप्पा पुर्गलकाया झुशेयव्या ॥
खंधं सयलसमत्थं तस्स दृ अद्भं भणंति देसो क्ति | अद्भद्स्ं च प्देभो परमाणु चेव अविमागी॥
बादरमुहुमगदाणं खंधाणं पुम्गला त्ति ववहारो , ते होति छष्पयारा तेलोक्कं जेहि णिष्पण्णं ॥
स्मे खंधणं जो अंतो त॑ वियाण परमाणू | सो सस्सदो असदो एक्को अविभागी परु्तिमषो ॥
आदेसमेत्तष्टततो ध।दुचदुक्वस्स कारणं जोदु | सोशेयो परमाणु परिणामगुणो सयममदो ७८
सदो खंधप्पमवों खंधो परमाणुसंगसंघादो । पुट्ठेसु तेसु जायदि सद्दो उप्पादियों खियदों ७६
णिच्चो णाशवकासोी ण् सावकासो पदेसदों भेदा | खंधार्ण पि य कत्ता पविहत्ता कालसंखाणं
एयरसवण्णगंधं दो फासं सहकारणमसह' | खंधंतरिद॑ दबव्बं परमाणु तंवियाणाहि।॥ ८१
उवभोज्जमिंदिएहिं य इन्दियकाया मणो य क्रम्माणि | जं हवद़ि धुत्तमण्ण।ं तं षत्वं पुगाल्लं আহক
धम्मस्थिकायमरसं अवस्णागेधं अमदमप्कासं। लोगामादं पृदटर पिदुलमसंबादियपदेसं ॥ ८३॥
अगुरुगलघुगेहिं सया तें अर्णतेहं परिण्दं णिच्च । गदिकिरियाजुत्ताणं का'णभूद्ं सयमङञ्जं
उदयं जह मच्छाणं ममणाशुगगहकरं हइवदि लोए । तह जीवपुगगल्लाणं धम्मं दच्वं वियाणाहि
जह इवदि धम्भदव्वं तह तं जाणे€ दव्वमधमक्खं । दिदि किरियाज॒ताणं कारणमूढं तु पु्टवीव
जादो अलोगलोगो जेसिं सब्भावदो य गमणठिदी | दो वि य मया विभत्ता अविभत्ता लोयमेत्ता य
# नौचे लिखी एक गाथा आचाय॑ जयसेन कृत तात्पये इृत्तिमें अधिक है--
पुढबी जलं च छाया चद्रिंदियविसय कम्मपाओगर्गा । कम्मातीदा एवं छुब्भेया पोम्गला होंति ८२(अर)
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