हमारे संस्कार गीत | Hamare Sanskar Geet

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Hamare Sanskar Geet by कृष्णदास - Krishandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम मेरो मन मोहनि श्रबला तुम मेरो मन मोहेउ हो माय । दरसन से प्रसन्न यह श्रबला देउ विदा घर जाऊं हो माय । तुमका नेवाजउँ तुमरे जने का नेवाजरं तूम हम पर दहिन-दयाल हो माय । तुम मेरो मन मोहनि श्रबला तुम मेरो मन मोहेउ हो माय माँ ठुमन मेरे मन को मोहित कर लिया है । ठुम्हारी शरण मे मैं तुम्हारी राह पर आरा रहा हूँ । सुझे श्रब श्रपना घर गन अच्छा नहीं लगता । मैने मचिया पर बैठी हुई श्रपनी माँ छोड़ी लाठी टेकता हुआ पिता दरवाजे के बगल में खड़ी हुई पत्नी गोद में खेलता हु दुलारा पुत्र रसोई बनाती हुई भाभी श्र तिलक सजाता हुश्रा भाई छोड़ा । स्वजन सम्बन्धी और कुटस्बियों का परित्याग क्या । सारे ससार का मोह त्याग कर प्रसन्नचित्त मैं तुम्हारी शरण में श्राया हूँ । माँ क्वाड़ खोलो । सकते अपना दर्शन दो । तुम्हारे मन्दिर तक यात्रा करके श्राया तुम्हारा पुजारी द्वार पर खड़ा है। जो मेरी माता को रक्त चढ़ाता है वह मोतियो का वरदान प्राप्त करता है । जो स्त्री सिदूर॒चढ़ाती है उसका सुहाग अचल हो जाता है । जो नारियल चढ़ाती है उसे पुत्र फल प्राप्त होता है । माँ प्रसन्नता पूर्वक श्रपना दशन देकर सुके विदा करो । मै तुम्हारी पूजा- श्रचना करता हूँ । ठम्हारे भक्तो की आराधना करता हूँ । तुम मेरी रक्षा करो मुझ पर दया करो । २ जग तारनि माँ कुल तारनि माँ मेरो मन लोचै तेरे दरसन को । मैया के दुश्ारे एक हरिश्नर पीपर हहर-हहर हहराये हो. माय । मेरो मन लोचैँ तेरे दरसन को ॥। १८




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