गांधी - साहित्य मेरे समकालीन भाग - 7 | Gandhi Sahity Mere Samakalin Bhag - 7
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
678
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गी © টি
১
नीतिज्ञका विवेक भी है ।.. .वह स्फटिक मणिकी भानि पवित्र है,
उनकी सत्यदीलता सदेहम परे टं । वह अहिसक और अनिदनीय
योद्धा हं । राष्ट उनके हाथमे सुरक्षित ह ।*
दक्षिण अफ्रीकाके श्री थम्बी नायड्का चित्र देखिये : “उनकी बुद्धि
भी बडी तीब्र थी। नवीन प्रइनोकों वे बडी फुर्तीके साथ समझ लेटे थे ।
उनकी हाजिर-जवाबी आश्चयंजनक थी । वे भारत कभी नहीं झाये थे,
फिर भी उसपर उनका अगाध प्रेम था। स्वदेशाशिमान उनकी नस-नसमें
भरा हुआ था। उनकी दढ़ता चेहरेपर ही चित्रित थी। उनका थरीर
बड़ा मजव॒त और कसा हुआ था । मेहनतसे कभी थकते ही न थ। कर्सो
पर बेठकर नेतापन करना हो तो उस पदकी भी शोभा बडा दें, पर साथ
ही हरकारेका काम भी उतनी ही स्वाभावित्रा रीतिसे वे कर सकते थे ।
सिर पर बोभा उठाकर बाजारसे निकलनेमे थम्बी नायडू जरा भी न शर-
माते थे । महनतके समयन रात देखते, न दिन । कौमके लिए अपने
स्वस्व क ग्राटूति देनेके लिए हर किसीके साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते थे ।
(पृष्ठ ३२९)
पर इन शब्द-चित्रोसे कोई यह न समभ ले कि गाधीजी विशेषणों-
काही प्रयाग करना जानते थे । वैसे वे जब विशेषणोका प्रयोग करते थे
तो दिल खालकरर करते थे। कमारी इलेजीन, नारणदाम गाधी, मगन-
लाल गाधी, महादेव देसाई भ्रादिके रेखा-चित्र इस बातके प्रमाण हे ।
परतु किसी भी व्यवितकी दुबेलता उनसे छिपी नही रहती थी ग्रौर अवसर
प्रानेपर वे उसी स्पष्टतासे उसे प्रकट कर देते थे, जिस प्रकार उसके
गुणोंपर प्रकाश डालते थे । सत्यका पुजारी व्यक्तित्वका अ्रधूरा चित्रेण
कर ही नही सकता । ऊपर जिन थम्बी नायड्का शब्द-चित्र दिया गया
हैं, उन्हीके बारेमे उसी चित्रमें गाधीजीने आगे लिखा हें-- अगर
थंबी नायड् हृदसे ज्यादा साहसी न होते और उनमें क्रोध न होता तो आज
वह वीर पुरुष ट्रान्सवालमें काछलियाकी अनुपस्थितिमें श्रासानीसे कौमका
User Reviews
No Reviews | Add Yours...