मुस्कुराते चेहरे मचलते झरने | Muskurate Chehare Machalate Jharane
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देहली से पठानकोट तक [ ५
कश जोरों से खींचा । फिर टुकड़े को गाड़ी के एक कोने में फेंक
कर टागें फेलाकर अंगड़ाई ली और ऊँधघने में मस्त हो गया।
मेंने भी अपने बकस तथा विस्तरे को एक लाइन में लगाया
तथा उसी पर लेटने का प्रयस्न करने छगा। जरा पर नीचे
खिसकाये, बदन को ढीला किया और पड़ रहा। ट्रेन तेज
रफ्तार से भागी जा रही थी परंतु मेरे विचारों की रफ्तार उससे
कहीं अधिक तेज थी । मुभे संतोष था कि इतनी विष्न-बाधाश्रों के
बाबजूद भी में काश्मीर की ओर बढ़ रंहा था। गाड़ी की रफ्तार
धीमी मालूम पड़ी । काश ! मेरे पंख होते और मै उड़कर तुरंत
वहां पहुंच जाता । खर, वास्तविक पंखों के स्थान पर यदि रुपयों
के ही पंख होते तो भी भें यान के पंखोका आधुनिक युग में
सहारा तो ले ही सकता था। मगर मुझे सनन््तोष करना था। क्या
यह कम था कि में अपने चिर अभिलाषित, स्वप्नो के
लोक की ओर अग्रसर हो रहा था | पता नहीं अनजाने ही कितनी
बार मेरी कल्पना उस भावमयी भूमि की सेर कर चुकी थी।
कश्मीर, संसार के असंख्य लेखकीं तथा कवियों का कल्पना
लोक तथा जहांगीर के जीवन की सबसे प्यारी भूमि, जो मरते
হুল तक उसके मोह कोन व्याग सका तथा जिसकी पंक्तियां
रह- रह कर मेरे कानों मे गूज उठतीं । उसने कहा था :--
गर फिर दोस बर रोये जमीं अस्त,
হুমা अस्तो, हमीं श्रस्तो, हमीं अस्त ।
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