तुम्हारी क्षय | Tumhari Kshay

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Tumhari Kshay by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुम्हारे समाज की घय द कहीं कुछ दोते-इवाते न देख मैंने उसे श्रब छोड़ दिया है । जिस वक्त मुझे उस प्रतिभाशाली तरुण की इस उपेक्षा को देखने का मौका मिला श्रौर यह भी सुना कि व सिफ़॑ एक बार थोड़ी-सी खिचड़ी जाकर गुज़ारा करता झा रहा है तो सच बताऊँ मेरी झाँखों में खून उतर श्राया । मुझे ख्याल श्राता था--ऐसे समाज को जीने देना पाप है । इस पाखणडी धूर्त बेहमान ज्ञालिम रशंस समाज को पेट्रोल डालकर जला देना चाहिए | एक तरफ़ प्रतिभाश्ों की इस तरदद श्रवहेलना श्रौर दूसरी तरफ़ धनियों के गदहे लड़कों पर शाधे दर्जन ट्यूटर लगा-लगा कर ठोक-पीट कर श्रारे बढ़ाना | मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसके दिमाग में सोलदो श्राना गोबर भरा हुआ था लेकिन बह एक करोड़पति के घर पैदा हुझा था । उसके लिए मैट्र्‌ पास करना भी श्रसंभव था । लेकिन श्राज वह एम्‌० ए० ही नहीं है डाक्टर है । / उसके नाम से दर्जनों किताबें छुपी हैं । दूर की दुनिया उसे बड़ा स्कालर समभती है। एक बार उसकी एक किताब को एक सजन पढ़कर बोले उठे-- मैंने इनकी अमुक किताब पढ़ी थी । उसकी शंप्रेकी बड़ी सुन्दर थी और इस किताब की भाषा तो बड़ी रदी है 7 उनकों क्या मालूम था कि उस किताब का लेखक दूसरा था श्र इस किताब का दूसरा | प्रतिभावों के गले पर इस प्रकार छुरी चलते देखकर जो समाज खिंन्न नहीं दोता उस समाज की साय दो छोड़ शऔर क्या कहा जा सकता है




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