समराइच्चकहा एक सास्कृतिक अध्ययन | Samraicchkha Ek Sanskratik Addhyan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रयथम-अध्याय
हरिभद्र सूरि का काल निर्धारण
समराइच्च कहा का नोव प्रव व का आधार बनाने से पूव उसकः रचय्रिता
का समय निर्धारण कर लेना आवश्यक ह । समराइच्चकहा और धूत्ताख्पान जाति
प्राकृत कथाआ व रचयिता हरिभद्र सूरि थे जा एक অল इवेताम्बराचाय वे লাম
से प्रख्यात थे । इनका समय निर्धारण अघालिखित ढंग से क्या जा सकता हू |
वुवरयमाला कदा के रचयिता उद्योतन सूरि ने हम्मिद्र सूरि को अपना
गुर माता है तथा उन्हाने कुबवल्यमाला कहा को शक सवत ७०० (७-८ ई० )
में समाप्त क्या था ४* जिससे स्पष्ट होता हू कि हरिभद्र की तिथि ७७८ ई० के
पूव्र हो रही हागी ।* मुनि जिन विजय ने हरिभद्व के समय तिणय नामक নি”
में हरिभद्र द्वारा उल्लिखित आचार्यो की नामावला उनके तिथि क्रम बे! अनुमार
इस प्रकार टी ह--धम काति (६०० ६५० ई०), बाउयपटीय के रचयिता
भतदरि (६०० ६५०} कुमारि (६२० ७०० ई०) शुभगुप्त (६४० ७००
ई०) भीर चात रक्षित (७०५ ७३२ ६०) ।* ठरिमदर सूरि द्वारा उल्लिषित दस
नामावली सं स्पष्ट हाता हू कि हरिभद्र का समय ई० सन ७०० के बाद ही रहा
होगा । अत उद्योतन सूरि 4 कुवल्यमालछाक्हा क॑ आधार पर हरिभद्र सूरि वा
अभ्युदय काल ७०० ६० से ७७८ ई० तक माना जा सक्ता ह् 1
प्रो० आभ्यमर ने हरिभद्र के ऊपर शकक््राचाय का प्रभाव बतलाकर उन्हे
शकराचार्य के बाद का विद्वान माना ह ।५ किन्तु मुनि जिन विजय ने हरिभद्र को
नकराचाय का पूवव माना है । उने अनुसार शक्राचाय का समय ७७८ ई०
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कुबलयमारा अनुच्छेट ६ पृ० ४-- जो इच्छई भवविरह को ण बदए
सुयणा । समयं सय सत्य गुरुणा समरमियका कटा जस्य ॥*
वहा अनुच्छेट ४३० पृ० २८२-- स्रां सिद्धतेण गुरुजुत्ती सत्तवेहिं जस्स
हरिभद्दा । वहु सत्य गय वित्थर पत्थारिय पयड सावत्यां ॥
इसका समथन डा० दचरथ शर्मा तथा यम० सी० मोर ने भी क्या है ।
दसखिए--हटारथ শমী-_অলা चौहान डाइनेस्टोज पृ० २१२ तथा यम्र०
मौर मानै--मम० क° इटाडकगन ।
४ मुनि जिन विजय--ह्रिमद्राचायस्य समय निणय ॥
५ विशतिविधिका-प्रस्तावना
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