समराइच्चकहा एक सास्कृतिक अध्ययन | Samraicchkha Ek Sanskratik Addhyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रयथम-अध्याय हरिभद्र सूरि का काल निर्धारण समराइच्च कहा का नोव प्रव व का आधार बनाने से पूव उसकः रचय्रिता का समय निर्धारण कर लेना आवश्यक ह । समराइच्चकहा और धूत्ताख्पान जाति प्राकृत कथाआ व रचयिता हरिभद्र सूरि थे जा एक অল इवेताम्बराचाय वे লাম से प्रख्यात थे । इनका समय निर्धारण अघालिखित ढंग से क्या जा सकता हू | वुवरयमाला कदा के रचयिता उद्योतन सूरि ने हम्मिद्र सूरि को अपना गुर माता है तथा उन्हाने कुबवल्यमाला कहा को शक सवत ७०० (७-८ ई० ) में समाप्त क्या था ४* जिससे स्पष्ट होता हू कि हरिभद्र की तिथि ७७८ ई० के पूव्र हो रही हागी ।* मुनि जिन विजय ने हरिभद्व के समय तिणय नामक নি” में हरिभद्र द्वारा उल्लिखित आचार्यो की नामावला उनके तिथि क्रम बे! अनुमार इस प्रकार टी ह--धम काति (६०० ६५० ई०), बाउयपटीय के रचयिता भतदरि (६०० ६५०} कुमारि (६२० ७०० ई०) शुभगुप्त (६४० ७०० ई०) भीर चात रक्षित (७०५ ७३२ ६०) ।* ठरिमदर सूरि द्वारा उल्लिषित दस नामावली सं स्पष्ट हाता हू कि हरिभद्र का समय ई० सन ७०० के बाद ही रहा होगा । अत उद्योतन सूरि 4 कुवल्यमालछाक्हा क॑ आधार पर हरिभद्र सूरि वा अभ्युदय काल ७०० ६० से ७७८ ई० तक माना जा सक्ता ह्‌ 1 प्रो० आभ्यमर ने हरिभद्र के ऊपर शकक्‍्राचाय का प्रभाव बतलाकर उन्हे शकराचार्य के बाद का विद्वान माना ह ।५ किन्तु मुनि जिन विजय ने हरिभद्र को नकराचाय का पूवव माना है । उने अनुसार शक्राचाय का समय ७७८ ई० 9 कुबलयमारा अनुच्छेट ६ पृ० ४-- जो इच्छई भवविरह को ण बदए सुयणा । समयं सय सत्य गुरुणा समरमियका कटा जस्य ॥* वहा अनुच्छेट ४३० पृ० २८२-- स्रां सिद्धतेण गुरुजुत्ती सत्तवेहिं जस्स हरिभद्दा । वहु सत्य गय वित्थर पत्थारिय पयड सावत्यां ॥ इसका समथन डा० दचरथ शर्मा तथा यम० सी० मोर ने भी क्या है । दसखिए--हटारथ শমী-_অলা चौहान डाइनेस्टोज पृ० २१२ तथा यम्र० मौर मानै--मम० क° इटाडकगन । ४ मुनि जिन विजय--ह्रिमद्राचायस्य समय निणय ॥ ५ विशतिविधिका-प्रस्तावना




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