विज्ञान | Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
37
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14 विज्ञान सितम्बर 1991
(4-6 मिलीग्राम/लीटर) पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है। इसके साथ ही हानिकारक जेवरासायनिक ओऑॉक्क्सीजन
(নবী জী৭ ভী-)3100119001091 08০0 0०7970) की मात्रा बढ़ रही है। प्रदूषित जल के उपयोग ने हमें अनेक
बीमारियों का तोहफा दिया है। जल में घुली आसेतिक की बढ़ी मात्रा (मानक मात्रा से) कैंसर, कैडमियम किडनी
रोग, सिल्वर लीवर व फेफड़े के रोग, फ्लोराइड दाँतों की बीमारियों जेसे फ्लूओरोसिस, मैंगनीज नपुसकता व स्मरण
शक्ति मे हास, आयरन उल्टी व मरकरी दृष्टिदोष, कुदता एवंश्रवण शक्तिके हास के लिए उत्तरदायी हैं ।
उपलब्ध पेय जल आज इतना अधिक प्रदूषित है कि विश्व में लगभग डेढ़ करोड़ बच्चे 5 वर्ष की आयु के पूर्व ही काल
के गाल में समा जाते हैं, जिनमें से एक तिहाई की मौत अतिसार रोग से होती है। “यूनीसेफ' के अनुसार निधन देशों
के लगभग एक अरब बच्चों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। भारत में भी उपलब्ध जल का 70 प्रतिशत भाग
भपेय है फिर भी मनुष्य इसे पीने को विवश है । उदाहरणार्थ हम गंगा जल को ही लें । वैज्ञानिक जाँच के फलस्वरूप
इस जल में हैजा, अतिसार के विषाणु, आँव आमातिसार के सिस्ट, फफूंदी, पीलिया, गेस्ट्रो के विषाणु मिले हैं--तट
पर शवदाह की क्रिया सम्पन्न होती है फलतः जल का तापक्रम 5-6° सेन्टीग्रेड बढता दै, जिसके चलते जल से 30.
35 प्रतिशत ऑक्सीजन निकल जाती है जो जल की जीवनदायिनी शक्ति है । विभिन्न नद्वियों की कमोबेश यही स्थिति
हे । इन नदियों का पृष्टीय जल ही नही, भौम जल (700०त् फटा) भी दिन-प्रतिदिन दूषित होता जा रहा है ।
यदि भौम जल के बहते प्रदूषणको न रोका गयातो आगामी शती में हमें भयावह स्थितियों का सामना करता पड़ेगा,
क्योंकि भौम जल का उपचार असम्भव नहीं पर अति दुरूह है। विभिन्न देशों की सरकारों ने जल प्रदूषण की समस्या
पर ध्यान दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस समस्या को गम्भीरता से लिया और 1981-90 को ' अन्तर्राष्ट्रीय जल
आपूर्ति व स्वच्छता दशक' घोषित किया था। हमारे देश में भी इस समस्या के समाधान हेतु टेक्नोलॉजी मिशन'
(16010010 14135100) की स्थापना की गयी है ।
सीबेज एवं विभिन्न औद्योगिक उच्छिष्ट में रे नदियों में जाने वाले पदार्थों में ऐसे तत्वों की अधिकता होती _
है जो जल में अघुलनशील (17501000) होते हैं, तली (900०7) में बैठ जाते हैं एवं अवसाद (सेडिमेंट्स) में समाविष्ट
हो जाते हैं । अवसादों के मृत्तिका खनिज (क्ले मिनरल) जैसे केओलेनाइट, इलाइट, क्लोराइट, मॉनटमोरिलोनाइट
जल में विद्यमान विषाक्त एवं हानिकारक धातुओं व पदार्थों को उपयुक्त भौतिक, रासायनिक ब जैविक परिस्थितियों
में अवशोषित कर लेते हैं। इस प्रकार जल की विषाक्तता (टॉक्सिसिटी प्राठझ्यंणा/) कम हो जाती है। और
जलीय माध्यम मं अवसाद अप्रदुषक (30०8४6०८) के रूप में कार्य करते हैं | लेकिन अवशोषित पदार्थ व भारी धातुएँ
जलीय माध्यम के भौतिक, रासायनिक गुणधमिता यथा पी० एच० (हाइड्रोजन লাগল सास्द्रता) रेडाक्स स्थिति
(ई० एच-पी० एच०) व लवणीयता आदि में परिवर्तन होने पर अबमाद से जल में जा सकते हैं । इस प्रकार जल में
विषाक्त धातुओं की मात्रा बढ़ सकती है जो मानव स्व्रास्थ्य व जलीय जीव-जन्तुओं के लिए हानिकारक है। ऐसी
হিঘিনি ঈ অলীষ অনা (4098010 96৫17701) সত্নন্দ (0০011001811) ঈ रूप में कार्य करता है ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेमर महाराज नारायण मेहरोत्रा, डॉ० अजय
श्रीवास्तव एवं डॉ० सच्चिदानन्द सिंह ने मिरजापुर, वाराणसी, इलाहाबाद, सैदपुर, गाजीपुर के गंगा अवसाद में
भारी धातुओं की मात्रा ज्ञात की । परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि भारी धातुओं यथा कॉपर, लेढ, क्रोमियम, निकेल, जिक,
मरकरी, कोबाल्ट व यूरेतियम की कमाधिक मात्राएुं सभी नमूनों में हैं । अनेक स्थानों पर धातुओं का संकेस्द्रण उनके
নালক্ষ নাল (155801৫5৪16) জীব হীল मान से अधिक है । इन धातुओं की माज्ञा की विवेचना उनकी स्थिति,
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