कमल - कुलिश | Kamal Kulish
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
कुसंस्का र। मुझे हँसी आई । उनके इस: मोटे कशोबवीत को देखकर जहा दि
भी याद झाया जब।इनके गले में प्रथम बार।पाँच সমন নাভী দিককার
हुआ सूत डाला था । पंडित ने गायत्री मन्जनदौन केपुषरे/भरावेज्े লাকি
तुम्हारे आचार्य जो कुछ कहें दृह॒शाते जाना । आचाये ने.खंडब्खूंड केर'्गा यन्ी
मन्त्र कान में कहा, मिश्रज़ी दृहराते शए ॥ अस्त' में उन्होंते नमिर्थ्रनी कासिर
पर हाथ रखक़र कहा---आयुष्यान् भव । मिश्वजी ने-भी उनके सिएणरे
हाथ रखकर कहा---आस्मान! भौ.।' मुझे उसः दिल्ले बड़े जोर की हसीओई
थी; आज भी हँसी न. रोक सका । मिश्रजी मेरेबालसखा थे, क्रित्तुश्रक मेरी
शिक्षा से आतंकित होकर मुझसे बात करने का साहसुत क्रतेशथेजउमियानी'
भले ही कुपढ़ हों, किन्तु उनकी नी ज्ञोठी, प्रहस्तें-भाल,यिज्ञोपवीज तथा
व्यवहार बातचीत में एक विचित्र-सी अकड़ <-इससेउनके ब्रोह्माग হীন
तुरन्त पता लग, जाता था। |, +! ! + र्ति कोा' पर पनेन
कुएँ के पास ही तो तीन धातुक्क स्त्रियाँ अपने मेलेःवडे लिए वटी फी)
शत छिद्रों से युक्त उनके ,मैले वस्त्र मिश्रजी के वस्त्रोंसे|कई/गुमाक्र्मिक
मले श्रौर बदवृदार् होगे । मिश्वजी नित्य नहाते*धोतेःतो है किन्ते
दया आई, मनुष्य मनुष्य में इतना भेद क्यों ? ब्राह्मण-देवत॑ प
हैं तो ये तब तक चढ़ नहीं सकतीं । । ' 7, ए. भा
बैठी हुई स्त्रियों में एक को अपनी शोर बुद्ुओं करे शारह ताकतेदिखकरे
मैंने उसे ध्यान से देखा--अरे, यह तो। रमरतिग्रा है ॥ छोती' ढलक गाईलत
नथुनों में नाक भरी है। मूँह से साँस लेती है, जिससे गन्दे दाँत बाहरीमिकी
हुए हैं। एक घिवौना-सा, लड़का पीठ पर' लटका है; एक गोद में धती है ।
शायद एक पेट में हो । ঃ ~ हू ॥ টিন 1101 জা
यह वही रमरतिया है न, जो आज से फर्द्रह वषं पूवोलग्भगतेस्व-चौदह्
वर्ष की रही होगी । मैं तब छोटा था । एक दिन घर॑की दीजाहासफ्ॉँदकर
खेतों की ओर भाग गथा था} घर के लोग, जेट की दुह सैल गोटी जाने
देते थे, इसलिए भाग श्राया था । गरम' घहराती हुईं लू और तपेन्मीली
हुईं धरती पर फुदकता-दौड़ता दूर बरगद की घती छाया में पहुँच गया था
यहाँ बड़े-बड़े कार्यक्रम हुआ करते--पतंग़वाजी, बरगद की जशशी का
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