कमल - कुलिश | Kamal Kulish

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Kamal Kulish by रमानाथ त्रिपाठी - Ramanath Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ कुसंस्का र। मुझे हँसी आई । उनके इस: मोटे कशोबवीत को देखकर जहा दि भी याद झाया जब।इनके गले में प्रथम बार।पाँच সমন নাভী দিককার हुआ सूत डाला था । पंडित ने गायत्री मन्जनदौन केपुषरे/भरावेज्े লাকি तुम्हारे आचार्य जो कुछ कहें दृह॒शाते जाना । आचाये ने.खंडब्खूंड केर'्गा यन्ी मन्त्र कान में कहा, मिश्रज़ी दृहराते शए ॥ अस्त' में उन्होंते नमिर्थ्रनी कासिर पर हाथ रखक़र कहा---आयुष्यान्‌ भव । मिश्वजी ने-भी उनके सिएणरे हाथ रखकर कहा---आस्मान! भौ.।' मुझे उसः दिल्ले बड़े जोर की हसीओई थी; आज भी हँसी न. रोक सका । मिश्रजी मेरेबालसखा थे, क्रित्तुश्रक मेरी शिक्षा से आतंकित होकर मुझसे बात करने का साहसुत क्रतेशथेजउमियानी' भले ही कुपढ़ हों, किन्तु उनकी नी ज्ञोठी, प्रहस्तें-भाल,यिज्ञोपवीज तथा व्यवहार बातचीत में एक विचित्र-सी अकड़ <-इससेउनके ब्रोह्माग হীন तुरन्त पता लग, जाता था। |, +! ! + र्ति कोा' पर पनेन कुएँ के पास ही तो तीन धातुक्क स्त्रियाँ अपने मेलेःवडे लिए वटी फी) शत छिद्रों से युक्त उनके ,मैले वस्त्र मिश्रजी के वस्त्रोंसे|कई/गुमाक्र्मिक मले श्रौर बदवृदार्‌ होगे । मिश्वजी नित्य नहाते*धोतेःतो है किन्ते दया आई, मनुष्य मनुष्य में इतना भेद क्‍यों ? ब्राह्मण-देवत॑ प हैं तो ये तब तक चढ़ नहीं सकतीं । । ' 7, ए. भा बैठी हुई स्त्रियों में एक को अपनी शोर बुद्ुओं करे शारह ताकतेदिखकरे मैंने उसे ध्यान से देखा--अरे, यह तो। रमरतिग्रा है ॥ छोती' ढलक गाईलत नथुनों में नाक भरी है। मूँह से साँस लेती है, जिससे गन्दे दाँत बाहरीमिकी हुए हैं। एक घिवौना-सा, लड़का पीठ पर' लटका है; एक गोद में धती है । शायद एक पेट में हो । ঃ ~ हू ॥ টিন 1101 জা यह वही रमरतिया है न, जो आज से फर्द्रह वषं पूवोलग्भगतेस्व-चौदह्‌ वर्ष की रही होगी । मैं तब छोटा था । एक दिन घर॑की दीजाहासफ्ॉँदकर खेतों की ओर भाग गथा था} घर के लोग, जेट की दुह सैल गोटी जाने देते थे, इसलिए भाग श्राया था । गरम' घहराती हुईं लू और तपेन्मीली हुईं धरती पर फुदकता-दौड़ता दूर बरगद की घती छाया में पहुँच गया था यहाँ बड़े-बड़े कार्यक्रम हुआ करते--पतंग़वाजी, बरगद की जशशी का




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