भूदान यज्ञ (वर्ष - 17, अंक - 1) | Bhoodan Yagya (Varsh-17, Ank-1)

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Bhoodan Yagya (Varsh-17, Ank-1) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 कान्कारी भूमिका ৪ ৪ ঘি भट-दस वर्षों से यद भादा यौ भाकाश्रा रीषि भाप कि अब तुम्हारी রহ नहीं । मैं भीर शाहियों? के विरोध में तो रहा ही ह्‌* जग शाही! के पिरोध मे भी शा हैं। भूत का अभाव पड़ेगा, तो वर्तमान भी भूत वन जायेगा इसीलिए জাজ युवक चाहता है कि हमारे दिमाग मे कोई चीज भदी न जाय । विय €दान्तिफे एच बात साफ लेनी ঘাতিহ কি हिसा . अतिकार की जो भूमिका रही है, वह क्या कभी समाप्त होगी 7“- हिंसा से संदर्भ तो वद्छ , लेकिन टल्व-परिवर्तन नहीं হীনা। 6 'समाज-रिवर्तन फी ता का सकता है / जो चद मानवा ष, ঘহ অহ ই ।জী मान्दा है कि इसका अंत तक षह नहीं होगा, क्योंकि अद तक यह हु 1 षह तरण नह षट परिविम में जीविका की सोज संपन्न हो गयी, जीवन की सोज जारी है |. लेकिन जीविका शरनभी्ोताह (| हिसा-अहिसा का इस अंक में বন দয হী জালা ই নত অজ ই वेवम दौर ॥ हो ?? यह शांतिसेना शला र्य होना चाहिए शांतिसेना को स सङ्गे समरज ধা संरक्षक नहीं সহ ह ^ से आवरित हिसा সী भद्र हिसा नहीं हक है त शातिसेना के पूजीपतियों ঘা किसी बनना है। বারী ' बडा र्‌र झातिसेना मे हो ल्य का परीतिम डे की वीरता औौर सगो मदक বধ नागरिक दा सभ्यता 11 इन दो ऊूस्यों 983 रना है; হর যয ২ ६ [ক নাং মহত আম नटीं रसना कि वह करापिशारः न: क वरोधमे सद है ।' हिंसा से ॐ नहीं शोगा, समाज नी হা শস্য কী ? साथ ही आज के अतिष्ठित भधिषठित पूवाद से रा বা पूति चर्‌ ह ऽके सामने स ह पफ को रक के ७ हिंसा ज्यादा कभी कर नही । भगर साज फी अधिक द म्‌ शति अनेसंस्वा पररिवतन हे लिए है: रहो जाय, तो द्सानि दौ जाती ह) सभं का समूह: अधूरी है, उसी तरह হানি সী না আহি. शान्ति सम्गदक सेना को क्रान्ति चेतना और प्रेरणा फैदा करने का यह काम करना है। गम उक्त संदर्भ म বহু विशियत है कि मकर वाद तरीके से ममि परं हेषा शध » बाँदों नहीं जा सक्नी। भूमि का বোন धिना एजद धाराम अकरिया के नहीं सकना। भेन 1 ६५१९१ िवाधाप, ४ সু ७० के सायन मेण “जादा घर्मीघकासी




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