सांख्यिकी | Sankhyiki
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
541
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साह्यिकी
तुलनात्मक अ्रष्ययन तया विवेचन सम्बन्धी रीतियो से सम्बन्धित विज्ञान है ।!
उपरोक्त परिभाषाग्री को ध्यान मे रखने हृए् निम्नलिखित परिमापा अभिक उपयुक्त है :
समक्, क्रमबद्ध सहस॒म्बन्धित प्रावुतिक भ्रथवा सामाजिक गोचर घटनाओं के
माफ, गणना या झनुमान को कहते हैं।*
उपरोक्त परिभाषा के प्रनुमार प्रको का सम्रहर्म किसी भी रीति-माप, गणना
याश्तुमानं घे हो सकता है । श्र प्राकृतिक ( 0581021 ) या तामाजिक (80209)
घटनाओ्रो से सम्बन्धित होने चाहिए तथा उन्हे विज्ञान कहने के लिए उन्हे किमी क्रम में
हो प्रशतुत करना चाहिए । सब प्र क तुलतात्मक दृष्टि से सम्बन्धित होते चाहिए | হন
सब विशेगतामरों का इस परिभाषा में समावेश होते के कारण यह परिभाषा पूर्ण एव
आधुनिक है । রি বলে
। 1954 (0 सांख्यिकीय रीतियां,
হুল
सख्या-शार्त्र सख्यात्मक तथ्यों से व्यवहार करता है और तथ्यों का एक्त्रीकरण,
झनुमान धथा उनसे निष्कर्ष निकालने का कार्य सरल नहीं है। प्रारम्भ में तथ्ये' का मग्रह
किया जाता है तथा उन्हे सुव्यवस्थित सूप मे प्रस्तुत करना पडता है ताकि उनकी शापम में
तुलना की जा सकर भौर वेह सरलता से समझ मे प्रा सकें । इसके प्रश्वात् उनत्री छुलना
करने प्रभवा प्रारम्भिक सम्बत्ध की जानकारी प्राप्त करने के लिए उतके माध्य निकाले
जाते हैं ग्रयवा वह रेवाचित्र पर प्रद्धित छिये जाते हैं ॥ तलश्चात् उनसे निश्चित निष्कर्ष
पर पैव का यल क्रिया जाना है) इन सब्र कार्यों के लिये विशेष रौतिया সঘলাহু আলী
है । यह रीतिया ही साल्यिकीय रीतिया हैं। प्रत साह्यिकीय रीतिया वह हैं. मितकी
सहायता से झक सम्रहर, वर्गकिरणा तथा सारणीयन करके उतकी तुलतां की जा भके
झौर शुद्ध परिणाम निकाले छा सकें। साधश्पिकीय रीतिया निम्नलिशित भागों में बादी
जा सकती हैं,”
_.>* प्रड्डू संग्रहण ( 0019७/00 ण 10308 )--इतके अन्तगंत उत नियमों
का प्रयोग आता है जो प्रदो संग्रहण से सम्बन्धित है। प्रद्धू सम्पूर्ण वट् कले दै
अथवा ममूते की प्रशाली का उपयोग करता है। इसके प्रन्तरन इस दोनों साबतों के
प्रलगत प्रपताये जाने वाले तरीके सम्मिलित हैं 1
९.८२ वर्गकिरण तमा सारणोपन (01053111026100. 0100 11001
४0% )-- भट्दो के एकत्रीकरए के: पश्चात् उनवो धुदोच एव सर्द रूपमे प्रष्नुत फणे
के लिए जो सिद्धान्त प्रपताये जाते हैं वह इसके झल्वर्गत झाते हैं। वर्गोह़त तथा सारणीवद्ध
श्रदु ही तिष्क्पं निकालने में सहायक हो सकते हे ।
৭
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