भारतीय अर्थव्यस्था | Bharatiy Arthavyavastha

Bharatiy Arthavyavastha by आर॰ एस॰ कुलश्रेष्ठ - R. S. Kulashreshth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानव तथा वातावरण ६ की बछारी अथवा तलघटी मिद्टियों की उ्वरा गबित उत्तम है। नदियाँ निरन्तर इस मिट्टी पर नंगी उपजाऊ मिट्टी की परतें दमा करती रहती हैं । अत इस मिट्टी में देश की अतेवः बहुभूत्य फसलें होती हैं । इसके विपरीत दक्षिणी प्रायद्वीप घी मिट्टी सात अग्रवा हल्की लाल है । हममे ककड मिले हुए हैं, अत उपज वो दृष्टि मरे ये मिद्ियाँ उत्तम नही हैं । यही वात पहाड़ी, दलदसी एवं रेतीली मिद्ठियों पर लागू होनी है । अत, प्राइ्ड तिक वनस्पति एय इृषि उपज का मिद्ठी वी श्रट्वति से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है | यदि किसी प्रदेश वी मिट्टी उपजाऊ है, तो वह उत्त प्रदेश पी बहुमूल्य सम्पत्ति भावी जाती है। उदाहरण वे लिए, आप सब इस बहावत से मलीर्माति परिचित होगे वि 'उ्ंरा मिट्टी सोना उपलती है ।' इस दृष्टि से गगा एय रातलज नदी के मैदातो वी मिट्टी अत्यन्त उत्तम है। (४) भदियाँ (ए८५६)---मानव विवाघ्त में सदियों या भी महत्त्वपूर्ण योग- दान रहा है| प्राचीन वाल में मानव सम्यताओं का विवास प्राय, नदियों की घाहियों में ही हुमा है। इसवा कारण यह था वि नदियाँ ्राधीम वात से मनुष्य को अनेव आवश्यवताओं वी पूर्ति वरती थो जेंसे पेपजल, सिंचाई सुविषा एवं यातायात জাহি॥ प्राचीन नदी घाटी सम्पताएँ इसका श्रमाण हैं। आधुनिक काल में भी नहीं पाटी योजनाएं मानव के आंधिव विकास मे महत्त्वपूर्ण भाग अदा बर रही हैं॥ सिंचाई जो कि शृषि के लिए अत्यन्त आवश्यव है नदियों द्वारा नहर निवालषर फी जा सकती है । इसबे अतिरिक्त जल विद्युत उत्पादन नदियों द्वारा ही प्रम्भव हो पका है विधत्ते द्रवि मौर उद्योगों वा वित्रास होता है। नदियों की घादियों में मिट्टी अधिव उपजाऊ होने मे पारण विभिन्न खाद्यान्न और व्यापारिय फसलें होती हैं। नदियाँ पहांडो से अच्छी मिट्टी वहावर मँदानों में विछा देती हैं जिससे मिट्टी की उपजाक इक्ति बढ़ जाती है। उबरा मिट्टी वी नयी परत प्रतिवर्ष मिट्टी ये ऊपर जगा होतो रहती है और एपि उपज में वृद्धि करती है। नदियाँ वर्ष भर बहने वाली अयवा वर्धा कास में बहने वाली होती हैं। बर्थ भर बहने बाती सदियों में लगातार प्ताम उठाया जा सकता है । वर्षा ऋतु में बहने वालो नदियों से बहुत बम सांभ हो पाता है । प्राचीन बाल मे नदियों बा उपयोग पेयजल, लिचाई एवं आवागमन वे पोघन के रूप में विया जाता या | यही बारण था दि अनेक वबत्तियाँ नदियों वे विनारो पर बसी होती थी । इस प्रवार अनेक प्राचोत দানন सम्यवाओं का विश्वास सदियों बी घाटिया मे ही हुआ और इसीलिये नदियों गो “मानव हम्पता की देता कट्दा जाता है (पताक दाल पौल दवता ग धावद दराफउध०त) ज दम हप्टि मे শীল गगा-शमुमा, सिन्‍्धु दजसा फरात, यांगिटों सोबयांग, डेन्यूप, पो तथा रेम्स नदियों मे उदाहरण दिय जा सत्रते हैं, जहौ अनेक सम्यताओं बा उदय हुआ ॥ অঙাধীন অথবা आधुनिदवाल में नदियों वी उपयोगिता मानद समाज वे लिए और भी वह ययी है। अब बहुद्देगयौय सदो घाटों मोजनाओओं (দিয়া [২:61 मार शिलुल्ट5) बायुग है जिनबे आपार पर नदिया पर वरप और




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