श्रीरामकृष्ण परमहंश | Sriramkrishan Paramhans

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Sriramkrishan Paramhans by स्वामी चिदात्मानंद - Swami Chidatmananda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ते घर्मकी ग्ठानि होती है मनुष्य राग/दिप हिंसादि दुष्कमिमिं प्रदत्त हो जाते है सत्यपरायणता छु्ते हो जाती हैएऔर मनुष्यीको जीवन केबल पझुचत्‌ विषयभोगोंमे हीः्ठिप्त होने लगता हैं संगवान्‌ सचिदानन्द ऐथ्वीतलपर अवेतीण होकर मर्नुष्योंकी मार्ग दिखाकर धघर्मकी स्थापना करते है जगतमें। शान्तिंकों पुनरुत्थान होता है विषय-वासनाकें गंदे? कुण्डमें हुए दुखी जीव स्वात्मानन्दकी पत्रित्र गंगासें विहार है कुछ ऐसा ही नियम है । घर्म्अधमेक्रे ज्वीर-माटे आति-ही रहते है और श्रीमगवान्‌ भी जीवोपर करुणा कर धंमक पुनरुद्वार कर शान्ति स्थापर्स करते रहते .है ।-.मगवानकी क्रचिन्त्य मायासे मोहित जीव हो हो जाया करता है उसका नष्ट दो ज़ाता है गोरखधघन्घेसे फँसा इआ स्ुष्यःउसोको सुमझ/ बैठता है वाद-विवादसे ही सन्तुष्ट है परन्तु इस उपायसे ग्ास्तविक ज्लान और शान्तिकी आपि हो सकती अनेक शाख्ोके विचारसे आय नम ज़रा करता है । सत्यकी. खोज लेबल अन्योंके बल्से कभी नदी हो सकती वह तो गुरुद्वारा ही हुआ . क़रती है दूसरा कोई-हपायटनही है 0 नल उप | हैं 1 ह वि हद न न श्रीरासकृष्ण-जैसे 7 । जगदूगुरुंरूपसें£ संसारमें प्रकट होते है 1 इनके वॉक्योका अंभाविं किसी ? विशेष कि डा भर कि _-- हि हे... अर थी शक न धन जि मे जाति वा देंशेंमे नहीं रृ्‌हता वह तो समस्त जेंगतः यु का न नो दा नी पे रे के गुर सा रे अपना प्रसांवडॉढता हि न पक पं ऐसे ही मंहांपुरुषोंसे घर्मकी . हुआ करतीं है




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