त्याग - पत्र | Tyag-patra
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.19 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त्याग-पत्र
रहा है। वह मेरे सामनेसे होकर श्रपने कमरेमें चली गई।
जाते जाते द्वारपर रुकीं और जोरसे हाथके बेंतकी
दालानमें फेंक दिया | बेंत मेरे पास श्राकर गिर गया ।
मेरी छुछ भी समझमें न श्रा रहा था । मैं सकपकाया-सा
खड़ा था । थोड़ी देर वाद में साहसपूर्वक उस कोठरीमे गया।
देखता क्या हूँ कि वहाँ घुभ्ा ओऔधी डइुई पढ़ी है । उनकी
साड़ी इधर उधर हो गई है श्रौर बदनका कपड़ा वेहृद मारसे
भीना हो गया है ) जगह-जगह नील उभर है । कहीं-
कहीं लट्ठू भी छुलक श्राया है | चुद गुम-सुम पढ़ी है । न
रोती हैं, न सुबकती हैं । वाल बिखेरे है श्रौर घरतापर पढ़ी
दोनों वॉहोंपर माथा टिका है । मुझे वहों थोड़ी देर खड़ा रहना
भी असद्य हो गया । मुमसे कुछ भी नहीं बोला गया | घुश्माके
गलेसे लगकर में वहाँ थोड़ा रा लेता तो ठाक होता । पर वह
संभव न हुआ । मैं दवे पॉव लोट आया ।
बद्द दिन था कि फिर घुश्माकी हँसी मैंने नहीं देखी ।
इसके पॉचि-छुद्द महीने वाद चुश्माका व्याह हो गया । मेनि
जल्दी-जल्दी तत्परताके साथ सब व्यवस्था कर दी । 'ुआआआका
उसी दिनसे पढ़ना छूट गया था । वह उस दिनसे सीने-पिसोने;
काड़ने-चुद्दारने ्ौर इसी तरहके श्रौर कामोंमें झात भावसे
लगी रहती थीं । काम करते रहदनेके भ्रर्तिरिक्त उन्हे और
किसी वातसे मतलब न था । न किसीकी निगाहें पढ़ना
प्वाइती थीं । कपड़ा कोई धोतरीका घुला नया पहनतीं तो उसे
जल्दी मेला भी कर लेती थीं । मुक्कसे वद्द तब बची-वची
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