चिरकुमार सभा | Chirkumar Sabha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ | चिरकुमारनसभा ।
करूँगा | हा, क्या बात हो रही थी | सालियोंके विवाहकी वात : प्रस्तावः
उत्तम है |
पुरवालाने विषादके कारण म्छान होकर कहा-देखो,' वाबूजी मौजूद
नहीं हैं। माँ तुम्हारा ही मुंह ताके बेठी हैं | तुम्हारी ही वात मानकर
वह बहनोंकी इतनी उम्र होनेपर भी उन्हें पढ़ा रही हैं আন ऐसी
स्थितिमें योग्य वर न ढूँढ़ सको, तो केसा अन्धेर होगा, अरा इस
बातका ख्याल तो करो !
अक्षयने लक्षण अच्छे न देखकर पहलेसे कुछ गम्भीर होकर कहा---
में तो कह चुका हैँ कि तुम छोग कुछ चिन्ता न करो। मेरी सालियोंके.
पति गोकुलमें पाल-पोसकर बड़े किये जा रहे हैं।
पुरवाला--गोकुल कहाँ है
अक्षय---जहाँसे तुमने इस अधमको अपने गोष्ठमे भरती किया है---
हम लोगोंकी चिरकुमार-सभा | ৃ
पुरबाखने सन्देहका भाव प्रकट करके कहा--प्रजापति (ब्रह्य) के
साथ तो उन छोगोंका झगड़ा है !
अक्षय---देवताके साथ लड़नेसे केसे जीत सकते हैं ? वे ोग उन्दः
सिफे खिझा देते हैं। इसलिए भगवान् प्रजापतिका झुकाव विशेष रूपसे
इसी सभाके प्रति है। अच्छी तरहसे बन्द की हुई हॉँडियाके भीतर
मांस जिस प्रकार पककर गल जाता है, प्रतिज्ञाके भीतर बन्द होकर
पर्वोक्त समाके सदस्य छोग भी उसी प्रकार विछकुल नरम हो गये हैं-- .
विवाहके लिये बिछकुछ तैयार हो उठे हैं----अब, पत्तलमें परोसने -भरकी. .
देर है। में भी तो एक समय इस सभाका सभापति था
आनन्दिता पुरबाखने विजय-गवेसे सुस्छुराकर प्रछा- तुम्हारी क्या
` दशा हद थी !
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