औपसर्गिक सन्निपात | Aupasargik Sannipat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि फे मकानों में स्यूदे न थे इसलिये चूहों को खरीद फर- अपने मफएा में रपका फि ये प्लेप से दम दो सावधान करेंगे। और হন दी छुआ उन्होंने सूल्य के बदलें अपने माण देकर उन्हें स्ाघधान फिया। सच पूछिये জী इम खोगों फे फारण ही उन पर ,थापत्ति भाठी है। यदि हमारे अ्रशुभ कर्म ন হী কী क्यों उनको आपसे पदले अपने प्राएं छोडने पढते | इसलिये कोच कद सकता है कि फ्रपझ्े यतसते घाले इन गणेशवादरनों फी भारत पर चढ़ाई ই। 4 (५) झन्धिज ज्यर या सक्षिपात-यद्ध नाम शाल्रीय नहीं है किन्तु फह्पित दे। कल्पित नाम रसना शाख्राजुसार ऐ भौर म भी भागे चलकर सिद्ध फरंगे। इस नाम में फेचल इतनी दी झापति है फि प्लेग बिना गांठ निकले भी होता एस से न्तेण का “प्रन्थिज ज्यर नाप्त रखना सर्वाश में ठीफ न दोगा 1 अब इमारे पाठक फहेंगे कि फिए यह रोग फिस नाम घाला है? ओर प्लेग के लक्षणों से उसके लक्षण मिलाइये। यदि ठौफ २ छ्त्तण जेते कि इस समय प्ले में देखे जाते द भायुवेदीय शास्त्रा- झुसार न मितं ठी समभा जायगा क्षि धायुवेंदीय सदुप्रन्य मी उक्त शोग फे परिक्षन में द्रङकशल दैं। परन्तु ऐेसा फदना भायुर्ेदीय खिद्धान्तों की अश्ञानफारी वतलाता है । 1 किसी रोगौ के सम्पूर्र लक्षण शांख्र वर्णित फिसी रोग से न मिलने पर यह कभी লন कदसकते कि इस रोग फा परिख्चाम णाखा- छुसार नही दोसकता। शायुर्वद्यीय किसी अन्थ का यद सिद्धान्त नहीं है कि जिन रोगों का हम नाम द्वारा विवर्ण फर चुके ५ उनसे अधिक रोग दो ही नदी सक्ते। किग्तु न्‍्यूनाधिफ दोपो के सम्मिल्न से तथा देश समय प्रकृति फे मित्र २ चर्ताव होने पर अनेक रोग उत्पन्न हो सक्ते हं, श्रौर एेसे योयो फे उत्पन्न होने पर स्यय सदै छनऊा नान नियतकूरः तथा दोपादिक्तौ को विचार छर उनफमी चिकित्क्षाः कर सका दे । चरक मं भी यद्‌ सिद्धान्त श्चच्छी अकार चुए किया गया दे। विकाराणामङ्शलो न जिद्रीयाकदाचन । नहि सवे विकाराणां नामतोसि शुवस्थितीः॥ «




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