उपयोगी चिकित्सा | Upayogi Chikitsa

Upayogi Chikitsa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ ः उपयोगी चिकित्सा ५--रोगी के साथ दर एक छादमी कों सदैव प्रीतिपूवेक व्यवहार करना चाहिए, जिससे उसका मन प्रसन्न रहे ; और उसे अपने रोग का साध्य-झसाध्य भाव का कुछ ज्ञान ( चिन्ता ) न रहे । रोगी का कुपथ्य-सेवन में मन चलने पर उसको बुत मधुर वाणी से सममा देना चाहिए कि यह चीज़ तुम्हारे योग्य नहीं है ; और इसके खाने से 'झमुक हानि होती है । तुम्ददारे अच्छे होने पर सभी चीज़ तुमको दी जाएगी; किन्तु कट शब्दों का निष्छुरता से प्रयोग न करना चाहिए । ६--रोगी के सामने उसके रोग की 'झसाध्यता या कष्ट- साध्यता का वर्णन न करना चाहिए; 'और न यही कहना चाहिए कि यह अच्छा न होगा; और दूसरों के उस प्रकार के रोगों का भी वर्णन न करे; जिनकों कि रोगी स्वयं देख चुका हो । ७--[वेद्य या डॉक्टर के उपदेश के सिवाय रोगी को किसी प्रकार का शरीरिक या सानसिक परिश्रम न करने देना चाहिए । दुबेल रोगी को पेशाव और पाख्राना' करने के लिए दूर न जाने देना चाहिए । अत्यन्त डुर्बेल रोगी को बिछौने में ही मल-मूत्र कराना चाहिए ।




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