उपयोगी चिकित्सा | Upayogi Chikitsa
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.96 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ ः उपयोगी चिकित्सा
५--रोगी के साथ दर एक छादमी कों सदैव प्रीतिपूवेक
व्यवहार करना चाहिए, जिससे उसका मन प्रसन्न रहे ; और उसे
अपने रोग का साध्य-झसाध्य भाव का कुछ ज्ञान ( चिन्ता ) न
रहे । रोगी का कुपथ्य-सेवन में मन चलने पर उसको बुत मधुर
वाणी से सममा देना चाहिए कि यह चीज़ तुम्हारे योग्य नहीं है ;
और इसके खाने से 'झमुक हानि होती है । तुम्ददारे अच्छे होने पर
सभी चीज़ तुमको दी जाएगी; किन्तु कट शब्दों का निष्छुरता
से प्रयोग न करना चाहिए ।
६--रोगी के सामने उसके रोग की 'झसाध्यता या कष्ट-
साध्यता का वर्णन न करना चाहिए; 'और न यही कहना चाहिए कि
यह अच्छा न होगा; और दूसरों के उस प्रकार के रोगों का
भी वर्णन न करे; जिनकों कि रोगी स्वयं देख चुका हो ।
७--[वेद्य या डॉक्टर के उपदेश के सिवाय रोगी को किसी
प्रकार का शरीरिक या सानसिक परिश्रम न करने देना चाहिए ।
दुबेल रोगी को पेशाव और पाख्राना' करने के लिए दूर न जाने
देना चाहिए । अत्यन्त डुर्बेल रोगी को बिछौने में ही मल-मूत्र
कराना चाहिए ।
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