हिमाचल प्रदेश के लोक नृत्य | Himachal Pradesh Ke Lok Nratya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लोक-नृत्य
অইনা অব सलिले सुसरब्धा अरिष्ठता
अतावों नत्यतामिव तीबो रेणुरजायत ॥
-ऋ० 1017216
कला वी कोई परिभाषा स्पष्ट स्पते सभवनटी। फिर भी कला की अनेक
परिभाषायें की गई हैं। प्रत्येक परिभाषा द्वारा कला के किसी एक पल पर
सामाय प्रकाश डालन का प्रयास क्या गया है । अनेव परिभाषाआ से क्लाके
व्यापक स्वरूप के दशन होते हैं कला का स्वरूप एक नही अनेक है। वास्तव में
कला अयवस्थित अनुभवों को सुव्यवस्थित रूप देने एक्शखला क्रम बनाने
सततत विनाशौ अवोधमम्य प्रवाह का स्थायित्व की मर्यादा और अथ देन का एक
माध्यम है। जमन कवि गटे के अनुसार वला आत्मा का सम्मोहन है और शिलर
बी मायता है कि इसक द्वारा मानव को सोया हुआ गोरब प्राप्त होता है।
बेग्तर कहते है-- 'मानव मे अपन अस्तित्व का जो हप है, वही कला है या मानव
क॑ सामूहिक जीवन का उच्चतम जाविर्भाव हैं। ए० वलटटन प्रोक का कथन
है-- “जव मानवता का सारा चान निपुणता और आवेग इनस भी श्रेप्ठ
स्वीकृति म उड्देल दिया जाता है वही स्वाकृति कला है। विश्वकवि रवीद्र नाथ
ठाकुर व॑ शदो म मानव के पास भावनात्मक शक्ति वा भडार है जो सारा आत्म-
रक्षा पर ही व्यस्त नही हाता । कला इस अधिशप पर ही निर्मित होती है। इस
अधिशेष शविति का यनि सदुपयोग न त्रिया जाय तो दुष्परिणाम हो सकत हैं ।
व्यवरितिगत मभिव्यक्ति के अतिरिक्त কলা के द्वारा कलाकार का सामूहिक
रूप म काय भी मानव जीवन के लिए उत्तना आवश्यक है जितना हवा, पानी
और रोटी कला मानव जीवन का मूल रस है। जीवन के प्रक्टीकरण और उस
एक्अध देत का रूप साधन है। यह केवल इीद्रिय सुख व धनी लोगो को सुख देने
वाला विक्रास नही। इसका तो अधिव गहरा जाधार और महान उद्देश्य है।
कला आत्मा की सच्ची पुकार है। कला ससार म प्रेम आनद और सोदय वी
सप्ठि करती है ।
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