आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन | Aadhunik Bharat Mein Samajik Parivartan

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Aadhunik Bharat Mein Samajik Parivartan by के के मिश्र - k k mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 संस्कृतिकरण प्रक्रिया के अन्तगंत नीची जातियों के सदस्य उच्च जातियों के व्यवहारों को अपना रहे हैं। इस अनुकरण की प्रक्रिया के कारण निम्न जाति के सदस्यों का व्यवहार परिवर्तित हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक परिवतंन आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के तौर पर चमार तथा अस्पृश्य जाति के सदस्य ब्राह्मणों का अनुकरण अपने जीवन की गतिविधि में इसलिए कर रहे हैं ताकि उनकी प्रस्थिति में सुधार हो और वे भी समाज में वही प्रतिष्ठा पा सकें जो ब्राह्मणों को मिलती रही है। पूजा-पाठ, जनेंऊ धारण करना, तीर्थयात्रा करना, अब शूद्र उसी प्रकार कर रहे है जैसा ब्राह्मण किया करते हैं। भव ये. अपने परम्परागत कार्मों को करना नहीं चाहते । इस स्थिति के कारण सामाजिक सम्बन्ध परिवर्तित हो रहे है। संस्कृतीकरण कौ स्पष्ट प्रक्रिया स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ২. ভি हुई है दसे इसके पहले भी छोटी प्रस्थिति के लोग उच्च प्रस्थिति वाले लोगों का अनुकरण करते रहे हैं। निम्न जाति के स्ोगों द्वारा नये व्यवहार प्रतिमानं के अपनाने के कारण अब उनमें नये-नये विचारों का समावेश हो रहा है, इसी विचार-परिवर्तेन के कारणं उनके भूल्य तथा मान्यताएं भी बदल रही है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में परिवर्तन हो रहा है । (2) भौद्योगीफरण ([7075018158101]--यद्यपि प्रौद्योगिक कारक का वर्णन ऊपर किया गया है फिर भी ओद्योगीकरण प्रक्रिया का वर्णन भारतीय सामाजिक परिवर्तेन को व्यक्त करने के लिए आवश्यक जान पड़ता है। भोद्योगी- बारण से तात्पर्य औद्योगिक क्रान्ति से है जिसके परिणामस्वरूप किसी समाज में बड़े उद्योग-धन्धों का विकास होता है। भारतवंषं में प्रोधोंगिक कारक सदियों से सामाजिक व्यवस्था को भ्रभावित करता रहा है फिर भी उसे हम ओऔद्योगीकरण नहीं कहेगे, क्योंकि उससे बड़े मौर मूलभूत उद्योगों का विकास सम्मव नहीं हो सका। भारत में ओद्योगीकरण का वास्तविक श्रीगणेश 1956 ई० में माना जाता है, जबकि भारतीय सरकार ने नियोजन के माध्यम से ओद्योगिक विकास -का कार्यक्रम 'शुरू किया। द्वितीय पंचवर्षीप योजना की उपलब्धियों से पता चलता है कि अब भारतवर्ष में औद्योगीकरण की प्रक्रिया कार्यरत है जिसका प्रभाव हमारे सामाजिक सम्बन्धों पर पड़ रहा है !' बड़े-बड़े उद्योगों के विकास के .कारण जहाँ एक ओर आधिक विकास में सहायता -मिल रही है वही पर दूसरी ओर विभिन्न सामाजिक समस्याएं, जैसे वेफारी, गन्दगी, शारीरिक अपराध, चोरी आदि के कोरण सामाजिक सम्बन्ध परिवर्तित हो रहे हैं। प्राथमिक सामाजिक सम्बन्ध जो भारतीय समाजे की विशेषता “थी अब बदलकर द्वितीयक ' होती जा रही है। सामाजिक दूरी की अवधारणा ' समाप्त हो रही है जिसका प्रत्यक्ष , प्रभाव गतिशीनता में वृद्धि है । लोग अपने गाँवों को छोड़कर उन स्वानों को जाने लगे हैं जहाँ उद्योग स्थापित किये जा रहे हैं ।' ऐसी स्थिति में इस बात की सम्भावना अब बढ़ रही है कि लोग कहीं अब अपने परम्परागत सगठनों से सम्बन्ध न तोड़ लें । ऐसा हो भी रहा है ! * ऐसे लोग जिनकी प्रस्थिति गाँव में ऊँची नही है वे शहरो की, ओर या उमर, स्थान पर जहाँ उद्योग लगाये गये है इसलिए जा रहे हैं ताकि उनकी भ्रस्थिति में सुधार हौ जाये । यदि ऐसा सम्भव हो सका तो फिर वे. लोग अपने पैतृक स्थान से अपने मिकट सम्बन्धियों को भी बुला लेते है और स्थायी रूप से उस नये स्थान पर रहने लगते हैं। इस आम्रवास तथा उत्पवास के कारण अनेक सामाजिक समस्‍्याएँ




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