प्रेमी अभिनंदन ग्रन्थ | Premi Abhinandan Granth

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Premi Abhinandan Granth by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सात पृष्ठ ८. ऋषिभिबंहुषा गीतम्‌ ৪ डा० वासुदेवशरण श्रग्रवाल डे २१७ ६. दो महान संस्कृतियों का समन्वय . . प्रो० शान्तिप्रसाद वर्मा हि २२० १०. कृष जैन श्रनश्ुतियां श्रौर पुरातत्त्व डा० मोतीचंद्र क ৪ २२६ “११. जैन-प्रंथों में भोगोलिक सामग्री और भारतवर्ष में जेन-धर्म का प्रसार 5 डा० जगदीरचंद्र जैन .. {4 २५० १२. हिन्दू राजनीति में राष्ट्र की उत्पत्ति डा० बटुकृष्ण घोष... क २६६ १३. इतिहास का शिक्षण डे श्रो रसिकलाल छोटालाल पारोक .. २७३ १४. देवगढ़ का गुप्तकालोन मंदिर .. ` पं माघवस्वरूप वत्स ५ २७६ १५. मथुरा का जेंनस्तूष प्रौर मूतियां (सचित्र) श्री मदनमोहन नागर्‌ . . ध २७६ १६. महाराज भानसिह श्रौर मान-कौतू हल' (सचित्र ) प्रो० हरिहरनिवास द्विवेदी २८५ १७. जैन और वंष्णवों के पारस्परिक मेल-मिलाप त का एक शासन-पत्र তাও वासुदेवशरण अग्रवाल क २६० ४-जैन-दर्शन २९३-२३६२ १. जेन तत्त्वज्ञान ६ प० सूु्बलान सषवी श २६५ २. जन दाज्ञनिक साहित्य का सिहावलोकन प्रो° दलमुख मालवणिया ४ ३०३ ३. परम साख्य श्री जैनेन्द्रकूमार मी ३२३ ४. जैनदर्शन का इतिहास और विकास पं० महेन्द्रकुमार न्‍्यायाचार्य ४६ ३२७. ५. स्याद्वाद श्रौर सप्तभंगी 94 पं० केलाशचंद्र सिद्धान्तज्षास्त्री पा ३३४ ६. सर्वज्ञता के श्रतीत इतिहास की ऋलक पं० फूनचंद्र जैन सिद्धान्तशास्त्री .. ३४५ ७. जेन-मान्यता मे धमं का श्रादि समय श्रौर उसको मर्यादा धः ও पं० वंशोधर व्याकरणाचार्य ^ ३५६ ५-संस्कृत, प्राकृत ओर जेन साहित्य ३६३-५ ६२ १. सुमित्रा पंचदक्ी गा डा० बहादुरचंद्र छाबड़ा थे ३६५ २. विक्रमसिह रचित पारसी संस्कृत-कोष স্তা০ बनारसीदास जैन डा ३६७ ३. पाणिनि के समय का संस्कृत-साहित्य प्रो० बलदेव उपाध्याय ১, ३७२ ४. प्रतिभा-मूति सिद्धसेन दिवाकर . . पं० सुखलाल संघवी ৮1 ইওও ५, सिद्धसेन दिवाकरकृत 'बेदवादद्र त्रिशिका पं० सुखलाल संघवी हट ३८४ ६. नयचंद्र और उनका ग्रंथ 'रंभामंजरो' डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये .. ४११ ७. प्राकृत और संस्कृत पंच-संग्रह तथा उनका झराधार श्रो ही रालाल जैन सिद्धान्तशास्त्री ४१७ ८- आचार श्री हरिभद्र सूरि और >> ६१८०५ = उनकी समरमयकाकहा . . ঢু मुन्ति पृष्यविजय ८. হর &, भगवतो-भाराधना' के कर्ता शिवाय श्रो ज्योतिप्रसाद जैन क ४२५ १०. श्रोदेव-रचित सस्याद्रादरत्नाकर' मं श्रन्य ग्रंथों और प्रंथकारों के उल्लेख (द डा० बो० राघवन 42 ४२६




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