अमरीका में सहकारिता | Amarika Men Sahakarita
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२२ ] अमरीका में सहकारिता
बहुत खरी-खरी भयोत्पादक बाते वही गई। उन लेखी में यह चेतावनी दी गई
कि यदि किसी चमत्कार से अधिकाश मानव-जाति वम की आग में झुलसन से बच
भी जाए तो आनेवाली अनेक पीढियो में देत्याकृति मानवी की सख्या उत्तरात्तर
अधिक और सामान्य मानवो की सख्या उत्तरोत्तर कम होती जाएगी। अन्व मे
उस लेखमाला पर यह सम्पादकीय टिप्पणी लिखी गई थी:
“की रण के खतर्से को यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखते हुए हमे परमाणु शस्त्रों के अपने
कार्यक्रम में बास्वविकता को लाकर काट-छोर करने की बात कदापि नहीं करनी चाद्िए ।
अमरीका और स्वतन्त्र विश्व की शान्ति-सुरक्षा के लिए हमें परम्परागत सावधानी के साथ
थरमाणु बम और हाइड्रोजन वम के परीक्षण जारी सबने चाहिए। परमाणु ऊर्जा आयोग
के भूतपूर्व अध्यक्ष ओ गीर्डन डीन के शब्दों मे, 'इमे अधिक प्रज्षेपणीय, अधिक बड़े ओर
अधिक अच्छे शस्त्रों का निर्माण करने के लिए निरन्तर परीक्षण करते रहना चाहिए ।” '
इस तरह न केवल नै तिक प्रश्त को भुला दिया गया, बल्कि हमारी पीढ़ी द्वारा
मानव-जाति के लिए उत्पन्न किये गए अत्यन्त भयानक और सर्वग्राही सकट को
समाप्त करने के प्रयत्न भी छोड दिये गए। यह समाचार पत्र अथवा परमाणुओं
उर्जा आयोग केवल यही सुझाव दे पाये कि 'हमे अधिक प्रक्षेणीय, अधिक बडे और
(भगवान बचाए) अधिक अच्छे दस्त्रौ का निर्माण करना चाहिए ।' अधिकं अच्छ
से यहाँ तात्पर्य उस हाइड्रोजन बम से ज्यादा अच्छे बम से है, जिसके एक ही विस्फोट
ने ३० से ५० लाख आदमियो का अन्त कर दिया था और जिसमे प्रयोगात्मक
विस्फोट के स्थान से दो सौ मील की दूरी पर एक जापानी मछुए की जान ले ही थी।
१९५५ के बाद के वर्षों मे कुछ अच्छे परिवर्तेत हुए। इक्का-दुक्का लोगो
को अमरीकावासियों की हास्यास्पद मन.स्थिति का मजाक उड़ाते हुए सुना जाने
लगा। माननीय पादरी बार के लेख की तरह के और भी कई लेख लिखे गए।
कभी-कभी लोगों ने यहाँ तक कहा - अपने बच्चो को जीवित रहने का अवसर
देने की शिष्टता ही हमारी पीढी का मुख्य काम होना चाहिए।” और अन्त में
उन्होंने पूछा : 'हम इसके लिए লা লহ হই ই???
हम यह तो मानने ही लगे है कि हम पथ-भ्रष्ट हो गए है, हमारा नै तिक-निर्देशन
नष्ट हो चुका है और अपने धर्म के वास्तविक सन्देश से, मूल प्रयोजन से, हमारा
सम्बन्ध-विच्छेद हो गया हैं। ह
में ऐसा सोचता हूँ या सम्भवतः यह मेरी मूतोभिकाषा ही हो कि हम इस
अपरिहाये सत्य को भी गम्भी रता से लेने लगे हें कि बीसवी शताब्दी के मध्य की...
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