भक्तिकालीन साहित्य में सगुण - निर्गुण के बीच विचारधारात्मक संघर्ष का समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य | Baktikalin Sahity Men Sagun - Nirgun Ke Beech Vicharadharatmak Sanghrsh Ka Samajashastriy Pariprekshy
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पहले चिंतक हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य
के इतिहास को वैज्ञानिक आधार पर प्रतिष्ठित करने के प्रयास में विभिन्न
युगों की काव्यधाराओं को जनता की चित्तवृत्ति के संचित प्रतिबिम्ब के
रूप में और साहित्यिक प्रवृत्तियों को युगीन सामाजिक परिप्रेक्ष्य से सम्बद्ध
कर देखने और व्याख्यायित करने की दृष्टि स्थापित किया था तथा इसी
संदर्भ में यह स्थापना की थी कि भक्तिकाल राजनीतिक उलटफेर के कारण
अपने पौरुष से हताश जाति की विवश प्रतिक्रिया का परिणाम हे ।।
सर्वप्रथम हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य की भूमिका
भे इस मान्यता का सविस्तार परीक्षण किया ओर तत्कालीन हिन्दी साहित्य
को एक हतदर्प जति की संपत्ति, एक निरन्तर पतनशील जति की चिन्ताओं
का मूर्त प्रतीक तथा इस्लामी आक्रमण की प्रतिक्रिया मानने के विचार का
तीव्र विरोध किया” और प्रतिपदित किया कि भवित आन्दोलन के एकाएक
प्रादुर्भाव का कारण कोई विदेषी प्रभाव नही, वरन् उस काल की लोकवृत्ति
का शास््सिद्ध आचार्यो ओर पौराणिक ठोस कल्पनार्ओं से युक्त हो जाना
हे । भारतीय पाडित्य ईषा की एक सहस्त्रान्दी बाद आचार विचार ओर
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|. हिन्दी सा0 का इति0 - आचार्य रामाचन्द्र॒ शुक्ल, पष्ठ -34, नागरी
प्रचरिणी सभा वाराणसी, उन्नीसरवों संस्करण सं0-205।
छः हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली, भाग-3, नई दिएली 1981 ई0,
पृष्ठ - 33
3. वही पृष्ठ - 72, 70, 307
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