मन के नये क्षितिज | Man Ke Naye Kshitij
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ मन के नये क्षितिज
समाप्त होते ही वे शीघ्र उठी और टेलीफोन की ओर दौडी, अपनी नौकरानी को
बुलाया तथा उत्कण्ठित होकर अपनी बच्ची के वारे मे पूछा । नौकरानी ने उत्तर
दिया कि बच्ची बिलकुल ठीक है । आश्वस्त होकर वे फिर खेलने लगी । कुछ
समय वाद जब वह अपने घर वापस गयी, तो उन्होने अपने कई पडोसियो, को वहाँ
एकत्र पाया । उन्होने दरवाजे पर नौकरानी को परेशान पाया और दरवाजे पर
उसने क्षमा याचना करते हए कहा कि पटले वच्ची के सम्बन्ध मे कोई चिन्ता की
वेत्त न थी, किन्तु टेलीफोन जने के कुछ देर पहले वह अपनी गाडी ये भिर गयी
थी, और उसके पेर गाडी मे उलझ गये ये तथा वह् सिर के वल नीचे लटक रही
थी । किमी को ठीक-टीक पता नही करि वह कितनी देर तक तटकी रही । एक
पुलिम करा सिपाही उधर से निकला तथा उसे वचाया । घटना-स्थल पर उपस्थित
पडो सियो ने नौकरानी को यह सलाह दी थी कि वह टेलीफोन पर कुछ न कहे
जिससे मा विकल न हो जायें क्योकि तव तक वच्ची विलकूल ठीक हो चुकी थी ।
घटना के तथ्यो पर सदेह नही किया जा सकता । जिस व्यक्ति के साथ
यह घटना घटी, उसीने मूल रूप मे यह कहानी वताई और मुझे उन कई
व्यक्तियो के नाम वताये जिनमे टेलीफोन पर की गयी दोनो की बातचीत की
पुष्टि की जा सकती थी 1 इस प्रमग मे यह प्रतीत नही होना कि ऐसी भी कोई
पुवंबर्ती घटना थी, जिसके कारण यह घटना घटी और वह भी ठीक उसी चिशेप
क्षण मे 1 समस्मृत्ति का सिद्धान्त, जिसे महाविद्यालय के अध्यक्ष गौर उसके मित्र
के प्रसग मे माना जा सकता था, यहाँ लागू नही होता | तथापि यह विण्वास
किया जा सकता है कि वच्ची के कष्ट का आभास उसकी माँ को हुआ होगा,
जो कि दृष्टि और श्रवण की सीमा के परे थी | हो सकता हे, वह युक्ति्तगत न
हो, किन्तु इसे समोग तो कहा ही जाना चाहिए । यद्यपि वह घर से बाहर होने
पर नौकरानी को टेलीफोन पर प्राय नही बुलाती थी और न इससे पूवं कभी
उसने इस प्रकार के मनोवेग के आधार पर ऐसा किया था, तथा उसने मुझे बताया
-कि साधारणतया वह अपनी नौकरानी पर पर्याप्त विश्वास करती थी, तथापि
यह् सम्भावना बनी ग्हती है कि सम्पूणं घटना एक सयोय-मात्र थी, भले ही यह
कितनी भी असगत प्रतीत क्यो न हो ।
३
प्राय रहस्यमय, उलझनपूर्ण और प्रत्यक्षत व्याख्था न की जा सकने
चालनी चटनामो को सहज ही 'सयोगजन्य घटनाएं कहा जा सकता है | एक ही
समय कनो गोर से प्रो का सम्प्रेषण क्या है ? सयोग । एक मिवका दुसरे मित
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