हिन्दी जैन शिक्षा भाग - 4 | Hindi Jain Shiksha Bhag - 4

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Hindi Jain Shiksha Bhag - 4 by सेठ भगवानदास लक्ष्मीचन्द्र - Seth Bhagavanadas Lakshmichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হয] २ राग रहित अर्थात्‌ ख्री आदि फे साथ फाम क्रोड़ा कुतृहलादि से रहित निर्विकार स्वरूप, तथा पुत्र कलत्रादि: के मम से रहित हो । >: ., . “ ३ देप रहित अर्थात्‌ वलवार, -दुप्‌. व्रिशूल, भाला श्रादि शस््न- शस्त संहारक चिन्होंते रहित, शांत मुद्रा वाला हो वहीं झदेव हैं। इससे विपरीत स्त्री श- स्वादि फे धारण फरने वाले छदेव नदीं कद्दाते । ४ सुदेव अशदश दूपणों से * मुक्त और द्वादश {शणो से युक्त जो हो बह घदेष है । छुदेवफे खरूप का निश्वय, चरित्र और मूर्ति द्वारा हो सकता है 1 ক হল দুয়া! के नाम्--दानांवतराय १ लामांसराय ५ भोगांतराय ३ उपमोपांतराय ४ वीर्यान्तराय ४ द्वास रवि ७ अरति ८ भय & झग्ुप्सा [ घृणा ) १० शोक ११ काम १२ मिथ्यात्त्त १३ अज्ञान १४ निद्रा १५ अविरति १६ राग १७ द्वीप হল ४ $ ११ गुणों कै नाम--अशोच् दत्त १ छुरमप्रुष्पचुक्ष २ दिव्य शनि हे घामर 9 आसम( सिंदोसन ) ५ भामएडल ६ दुंदुमि ७.धन्त्रय ८ शानातिशय & घचवात्तिशय १० पूजातिशय ११ अआअपायापगम अतिणय (अदं परर तीर्थकर भगवान विरते यद्य पर महामारी दष्कोल दि उपद्यों का न दोना ) १२




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