जैन - सिद्धान्त - भास्कर भाग - 14 | Jain-siddhant-bhaskar Bhag - 14

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Jain-siddhant-bhaskar Bhag - 14 by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किरण] विश्व इतिहांस और भूगोल के लिये जैन साहिय की महत्ता १३ काशयपयश का द्वी अपर नाम 'उम्रवश! है। 'मक्तिप्त आदिपुराण! (४० ७७) में लिखा है कि “काश्यप ने अपना नाम मधवा खखा और “उम्रवश' फा मूल नायक हुआ ।'' तेदसवे तीयेहनर पाश्चनाथ भी उम्रवश के थे |-उपरात्त नागवश के राजाओं का सम्पर्क उम्रदश से माना जाता है। उरग या उग्र नागवश के समान ही 'उद्गरस! (1805०) मामक जाति के लोग मध्य एशिया में रहते थे । समव है, यट मूलत उम्रवश से सम्बंधित हों। मध्य एशिया के यह लोग 'अपो पूर्चज का नाम काश्यप ही बनाते हैं' | माथघश में श्रत्िम तीथेंफर महावीर फा जम हुआ था । “आादिपुराण' में लिखा है कि सती सुलोचना के पिता अकम्पन ते अपना नाग श्रीघर रकखा था और वही “नाथवशः का मूल नाग्क हुआ था। यह वश ज्ञातूकुन! नाम में भी प्रसिद्ध रह है । इस बश की ऐतिहासिक स्थिति प्रकट फरने बाले कई लेख 'अनेझातः में प्रकाशित हुए थे। इस प्रकार विज्ञ पाठक देखेंगे कि जैन साहित्य विश्वइतिद्यास और भूगोल ॐ श्रध्ययन के लिये कितने महत्व की वस्तु है। क्या ही भ्रच्चा हो कि योग्य जैन विद्वानों द्वारा इस दिश म बिशेष श्रन्वेषण॒ कराया जवे ! इतिशम्‌। १९ दद्ियन दिस्दोरीकल दारो, भा १ १० ४६०॥ २ ६० द्वि० घा०, भा० २ ए० २५।




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