मैथिली - गीतान्जलि | Maithili - Geetanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथमसर्ग । ४ ऐजन | तुश्च पद्‌ सेवव हमे जगमाई ॥ अनुपम एहन कते सुख पायव मोक्षहुं नहि समताई ॥' नयनक जलूस चरण कमल धोपए, हदय श्वस्य हरपाई। मनक धृप दे चित दे पूजत सहस सहस गन गाई॥ चरन ध्रसेदिं श्रपन शिर श्रर्पव॒चरनहु नीर हाई । কিন্ত অ मागव, मोगव पद रति 'तखनहि कुमर कहाई? ॥ ५ श्रीराधाकृष्ण भजन | जय जय राधा कृष्ण मुरारि ॥ ध्रु० ॥ जय गोकुलपति विनय पुकारि, अचछा छोकक करह पुद्धारि ॥ ग्वाल वाल गोपी सहचारि, हमर ध्यान त॑ देलह दारि ॥ र्मी सख दलि परतारि, तं नहि शरारत सुनह पुकार ॥ प्राह धय गज जखन पद्कारि, गजक देह तखन उधारि ॥ द्रौपदि चीर दुशाशन टारि, तखन वचोलह इनक उधारि ॥ #कुमर” शान भल देव विचारि, हमरा आवने दिय प्रभु दारि॥ किक भम मम 2० पापा मत पा 4११ ७2०४०७३०० धान वाकइााा हक ७ ९००००१५७७५ कराता: ७1७३ ए+४ धर क ५ इनकाक मारा 02१०६५३0९2:कावका३9००१००३० ३३ १३-७३)७३३०ाा३ारमा 2 कनभाज#मक अनुपम-अपूर्व; समताई-वरावरि; सहस-हजारों । असेवि-जांति । पद रतिनपैरक भक्ति ॥ सहचारि-संग संग घुमनहार; आरत-करुनामय; चीर-वस्न; उधारि८ इज्जति ।




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