ज्ञान - वाटिका | Gyaan Vaatika

Gyaan Vaatika by पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ - Pandit Chainsukhdas Nyayteerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञान-बादिका प्रथम कलिका हम कोन है ? कहाँ से आये हैँ. ? कहो जायेंगे ? यह जगत হ্যা ই? हमें क्या करना चाहिए ! हमारा आचार विचार कैसा होना चाहिए ? “आचार्य श्री तुलसी”? ये वे प्रश्न हैं जो हर एक आस्तिक व्यक्ति के मन मे उथल श (৬০ [ब সি पुथल मचाये बिना नहीं रहते। वस इसी चिन्तन मे लीन এ ৬২ এ ও < 3९ ५ व्याक्त सहसा कह उठता है, “मे हू ढ़ रहा हूँ, में क्‍या हूँ पर पता नहीं पाया में क्या हूँ”, प्रस्तुत उपक्रम इसी की खोज मात्र है। प्रश्न १--मैं कोन हूँ ९ उत्तर-मे' आत्मा हूँ । प्रश्न २--आत्मा किसे कहते हूँ उत्तर--ज्ञान द्श न मय शाश्वत द्रव्य को आत्मा कहते हैं। भले ही ओँखों से आत्मा दिखलाई न दे फिर भी यह जो बोलने वाला, खट्टामीठा बताने बाला ओर आत्मा का विधि-सिपेध करने वाला है, वही आत्मा है | जिसे मैं” और “मेरा” इस प्रकार का १




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