चरक मासिक पत्रिका | Carak Masik Patrika
श्रेणी : पत्रिका / Magazine
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चरक मासिक पत्रिका... १६
अग्नि मुख रस (वि, र:)--इस रस मे मीठा तेलिया मिलाया जाता है ।
ग्रजीणं+ उदर बूल, भ्रजीणं से उत्पन्न ज्वर, पमन में इसका श्रच्छा उपयोग होता
है। मात्र[-- १ से ३ र० तक।
जीण कण्टक रस (भें. २.)--इस रस में भी मीठा तेलिया पड़ता है ।
गुर अग्नि मुख रस के समान ही हैं | मात्रा-- १ से ३ र० तक ।
अमीर रस (वे. जी,)--यह रस उपदंश में विशेष रूप से उपयोगी है.।
उपदंश की किसी भी अवस्था में एवं उपदंश जन्य बातरक्त, गठिया में लाभदायक
है।मात्रा $ से १ ० तक। ,. , +
अश्वकचुकी- रस (वै, सा. सं.)-इस रस में विशेष रूप से मीठा
` तेलिया श्रौर अमाल गोटा भिलाया जाता है अतः भ्रजीरं, ग्रुल्म, बद्धकोष्ठ, ज्वर
में लाभ करता है। मात्रा--१ से ४ र० तक ।
अश कुठार रस (र. ' रा. सु.)--इस रसायन के सेवन से अर्श् में अच्छा
लाभ होता है। दस्त साफ होता है । मस्सों की पीड़ा जाती रहती है । मात्रा-~
२ र० से १ माशा तक |
अश्विनी छमार रस (अनु. त.)--पित्त प्रधान ज्वर, मैलेरिया, विषम
ज्वर, उदरवायु, मूत्रक॒च्छ, उदर शूल, और अतिसार में अत्यन्त उपयोगी है ।
मात्रा--१ र० से २ र० तक ।
। अम्लपित्तान्तक रस (र, गा. सु.)--श्रम्लवित्त) वमन, हृदय दाह में
बहुत लाभ करता है । मात्रा-- १ मा० ।
आनन्द भैरव रस (लाल) (रसेन्द्र) (ज्वरातिसारे)-इसके सेवन से श्रतिसार
मरोड़, पेचिश, ज्वर युक्त अतिसार, उदर शूल और भ्रजीणं सम्पूर्ण रूप से दूर
होते हैं । मात्रा-- १ से २ 'र० तक । श
आनन्द भैरव रस (काला) (र. रा. सु.) (कास अधिकार) --खांसी
श्वास, जुकाम, नजला तथा कास युक्त ज्वर में इस रसायन का अच्छा उपयोग
होता है | मात्रा-१ सेर र० तक।
श्रामवातार रस \वटी)(मै. र.) -जोड़ं का ददं, ज्वर, गछिया, भ्रादि
वायु रोगों में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है । मात्रा-- १ से २,९२० तक ।
च्मारोम्य वर्धिनी (वटी) (र. र. स.)--अजीर्ण, पुराना व नया कब्ज,
मालावरोध से होने वाला ज्वर) उपद्रव स्वरूप अन्य उदर विकारो में लाभ
पटियाला फांसी सरहिन्द, जबलपुर, 'नालतन्धर देद्रामाद् को याद् रं ।
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