एकादश स्कन्ध | Ekadash Skandh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१.५९ तऋ्र.ष्रयोका श्चाप
मत्स्यो गृहीतो मस्स्यध्नैजलिनान्यैः सहार्णवे ।
तस्योदरगतं रोहं' स शल्ये छन्धकोऽकरोत् ॥ २३ ॥
मछली मारनेवाले मछुओंने समुद्रमें दूसरी मछलियोंके साथ
उस मछलीको भी पकड़ लिया। उसके पेटमें जो लोहेका टुकड़ा
था, उसको जरा नामक व्याघने अपने बाणके नोकमें ल्गा
लिया ॥ २३॥
भगवाजञ्ज्ञातसर्वाथ ईश्वरोऽपि तदन्यथा |
कतुं नेच्छद. विप्रशापं कालरप्यन्वमोदत ॥ २४ ॥
भगवाच् सब कू जानते थे। वे इस शापको उलट भी
सकते थे। फिर भी उन्होंने ऐसा करना उचित न समझा । काल-
रूपधारी प्रभूने ब्राह्मणोके शापका अनुमोदन ही किया ॥ २४॥
इति श्रीमद्धायवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामेक्ा दश्चस्कन्पे
म्रथमो.ऽभ्यायः ॥ ¢ ॥
१. ढोदं शठेषु टु° ।
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