जयशेखर सूरी कृत जैन कुमार सम्भव महाकाव्य का साहित्यिक अध्ययन | Jay Shekhar Soori Krit Jain Kumar Sambhav Mahakavya Ka Sahityik Adhyayan

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Jay Shekhar Soori Krit Jain Kumar Sambhav Mahakavya Ka Sahityik Adhyayan by श्याम बहादुर दीक्षित - Shyam Bahadur Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫ ০০৫ __ _____मथम।भझिक़रेद : जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व// _ __ ওল ४ जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का महाकाव्यत्व-/“ “मैं किया है। किसी-किसी ने काव्य को दार्शनिक ओर किसी ने संमीतमय विचार कहा हे। अकेले महाकवि वदुर्सवर्थ ने काव्य मे भावों को प्रमुखता से स्वीकार करते हुए उसके स्वरूप का यथार्थप्राय प्रकाशन किया है। जेन कवियों का काव्य-विषयक मान्यता- सामान्य जनता के हृदय में दर्शन एवं धर्म के दुरूह तथ्यों को पहुँचाने के लिए जैन धर्म प्रचारक बहुत पुराने समय से कविता का सहारा लेते आये है और आज भी ले रहे है। जैन दार्शनिकों का काव्य कला की ओर आकृष्ट होने का यही रहस्य है। जैनाचार्यो ने काव्य के प्रमुख तत्त्वों (रस, छन्द ओर अलंकार आदि) को तरह ही अपने-अपने ग्रन्थो मे उस्के स्वरूप का भी प्रतिपादन किया है। जैनाचार्यों में हेमचन्र का प्रमुख स्थान है उन्होंने काव्य की परिभाषा इस प्रकार की है- “अदोषौ सगुणौ सालङ्कारो च शब्दार्थो काव्यम्‌” और इस मूल की वृत्ति करते हुए उन्होने लिखा रै- “चकारो निरलंङ्कारयोरपिशब्दार्थयोः क्वचित्काव्यत्वख्यापनार्थः' आचार्य हेमचन्द्र के पश्चात्‌ दूसरे जैनाचार्य वाग्भट है। उन्होंने काव्य की परिभाषा-




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