जैन साहित्य का वृहद इतिहास भाग - 6 | Jain Sahity Ka Vrihat Itihas Bhag - 6

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Jain Sahity Ka Vrihat Itihas Bhag - 6  by गुलाबचन्द्र चौधरी - Gulabchandra Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ जन साद्दित्य का बृद्दद्‌ इृतिदास पचकल्पभाष्य के अनुार आर्य काल्‍क प्रथमानुयोग, छोकानुयीग ओर सम्र- हणियों के प्रणेता थे। छीकानुयोग अष्टाग निमित्तविद्या का अन्य था। उसके नष्ट हो जाने पर गण्डिकानुयोग की रचना की गई! । तथ्य जो हो पर आज प्रथमानुयोग हमारे सामने नहीं है और न गण्डिकानुयोग । इसलिए ग्रथमानु- योग की भाषा रैली, वर्णनपद्धति, विपयवस्तु, छनन्‍्द आदि में क्या क्या विशेषताएँ, थीं, यह जानने के हमारे पास अब कोई साधन नहीं | प्रथमानुयोग-विषयक हमे जो प्रतिनिधि रचनाएँ मिलती हैं--यथा विमछसूरि का पठमचरिय, जिनसेन का हरिवशपुराण, जिनसेन का महापुराण, शीलक का चउप्पन्नमहापुरिसचरिय, भरद्नेश्वरकृत कहावलि और देमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित--उन सबमे उन्हे प्रथमानुयोंग विभाग की रचना कहा गया है और प्रथमानुयोग के आधार से रची गई अनेक प्राचीन स्वनाओं ( जिनमे से अनेक अनुपरष्व है } को अपना खोत मानाः गया है। प्रथमानुयोग और उसके आधार पर रची गई प्राचीन कृतियों ( जोकि ईस्वी सन्‌ की प्रारम्भिक शताब्दियों मे रची गई थीं ) भले न मिलती हो, पर प्रथमानुयोग और एतद्विषयक पश्चात्‌कालीन सैकड़ों रचनाएँ, तथा अन्य अनुयोगों ( चरणकरण, गणित और द्रव्यानुयोग ) की भी रचनाएँ आगमेतर साहित्य की विद्याल्ता, व्यापकता और लोकप्रियता की अवश्य द्योतक हैं । चूँकि आगमिक साहित्य बहुत पीछे ( ई० सन्‌ ४५२३-४६४ में ) लिपिबद्ध हुआ था इसलिए आगमिक और भआगमेतर साहित्य के बीच निश्चित मेदक रेखा खींचना सभव नहीं। फिर भी आगमिक साहित्य के पूर्ण होने के पहले ही आागमेतर साहित्य की रचना प्रारम्भ हो गई थी और तब से अब तक जारी है। हमने ऊपर यह मी बतलाया है कि आगमेतर साहित्य आगमिक साहित्य १. पच्छा त्तेण सुत्ते णद्दें गडियाज्ुुयोगा कया । २ विमलसूरि ने पूर्वंगत में से नारायण भोर बलूदेव का घरित्र सुनकर पडउम- चरिय की रचना की | चउपक्षमद्याएरिसचरिय निबद्ध नामावलियों ( समवचायाग, सूत्र १३२ ) के जाधार पर लिखा गया कर पद्मचरितत छजुत्तरवाग्सी कीतिंधर की रचना के जाधार पर तथा जिनसेन के क्षादि- पुराण का झाधार कवि परिमेष्ठीकृत वागर्थसग्नह बतलाया गया है । ३ पादल्घिसूरिकृत तरणलछोऊा ( ई० दूसरी হাতাভদী ) भद्ववाहुकृत चासुदेव- चरित शादि ।




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