नवीन जगत से प्राप्त लालसाएँ | Navin Jagat Se Prapt Lalasaen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Navin Jagat Se Prapt Lalasaen  by श्री शकुन्तला राव शास्त्री - Shri Shakuntala Rav Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री शकुन्तला राव शास्त्री - Shri Shakuntala Rav Shastri

Add Infomation AboutShri Shakuntala Rav Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[४ ] रूप से प्रथक रहा । यह सम्भत्र है कि आरम्भ में बहुत समय तक दरएक वंश ने अपने सूक्तों का ही यज्ञ में प्रयोग किया हो ! क्रमशः ये स ग्रह आदिम निवासियों के अनेक समुदायों में प्रचलित हो गये और इतना तो निश्चय ही है कि उनमें से सबसे उत्तम संग्रहों का अधिक प्रचार हुआ | समाज में सामूहिक एकता और राष्ट्रीय चेतना के बढ़ने पर, इस समस्त काव्यमय साहित्य के संकलन की आवश्यकता हुई। इस प्रकार उस ग्रन्थरक्ञ का निमौण हुआ जिसे आज हम ऋग्वेद कहते हें । परन्तु इसके बहुत पहले कुछ सूक्त विशेषरूप से यज्ञीय कायो के लिए प्रयुक्त हो चुके थे। उदाहरणाथ, कुछ मंत्र केवल गाने के लिए होते थे, कुछ यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित होने पर गाये जाते थे और कुछ का ज्ञान सोमाभिषेक-सम्बन्धी कृत्य के समय किया जाता था। इस प्रकार विशेष कार्य के लिए विशेष मंत्र-संग्रह प्रचलित हो गये। जिन मंत्रों का उपयोग गायन के लिए होता था उन्हें सामन्‌ कहा जाने लगा और कालान्तर में अनेक मंत्र गाने के लिए चुनकर अलग कर लिये गये | इन सब मंत्रों का सामवेद में अन्तभौव हुआ । इन्हीं मन्त्रों के दूसरे समुदाय का प्रयोग यज्ञ-सम्बन्धी अनेक कार्यों में पढ़ो जाने के लिए होने लगा ओर इन्हें यजष का नाम दिया गया । यह सत्य है कि इन संपग्रहों के निर्माण में बहुत समय लगा होगा । इस प्रकार विभिन्न सूक्तों का सग्रह बनने लगा, यहाँ तक कि ये अपने वतमान कलेवर ओर विस्तार में आ गये। ऋग्वेद आय लोगों के पवित्र




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now