आँख की किरकिरी | Aankh Ki Kirkiri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
118 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| म्म् ॥ न | रवोन्द्र-साहित्य कः ` भाग २ १-२ २
पढ़कर रस ले सके, तो में तो उसमें कोई बुराई या हँसीकी बात नहीं देखता ।
अन्नपूर्णाके कमरेमें पुत्रका कण्ठस्वर नते ही राजलक्ष्मी हाथका सबकाम `
छोड-छाडकर दौडी चली आद, ओर् तीत्रक्टसे बोली, श्वया बाते { तुम |
दौनौमं क्या सह हो रही है
| महेद्धं उत्तेनिततो था ही, बोल उठा, “सलाह कछ नहींहोरी। खनो
सा, बटरूको मं द्ासीकी तरह दिनरात काम-घन्धेमं म्ोकना नदीं चाहता,
माने अपनी उद्दी ज्वालाका दमन करते-हुए अत्यन्त तीदण-बीर कण्ठसे -
` कटा, «तौ (उनका वया करना चाहते हो १ ..
महेंखने कहा, “में उसे पढ़ना-लिखना सिखाऊंगा ।”
राजऊदभी कुछ जबाब न देकर तेजीसे चली गई, और क्षण-भर बाद ही
बहूका हाथ पकड़कर उसे महेंन्द्रके सामने स्थापित करती-हुईं बोलीं, “यह लो
अपनी घरोहर, सिखाओ जितना सिखाना हो पड़ना-लिखना
इतना कहकर वे अन्नपूर्णाकी तरफ लपकीं और गलेमें आँचल डालकर हाथ
डिकर बोलीं, “माफ करना, मकली-मालिकिन, मुझे माफ करना री
..... बहनौतकी इतनी मान-मर्यादा है, में समझ नहीं पाई थी ! इनके कोमल `
द्थोमि मेने ल्दीके दाग लगा दिये हैं, अब छो, तुम इन्हें घो-पोंछकर मेम-साव
..... बनाकर महेन्रके हाथ सौंप दो, ताकि ये कुरसी-टेबिलपर बठकर पढ़ाईलिखाई
.... कर सकें, दासीबत्ति में हो कहूगी।”? 20507 0 8 ६
इतना कहकर राजलट्ष्मी सीधी अपने कमरेमें चली गई, और जोरसे किवाड `
चन्द् करके भीतरसे हड़का बन्द कर लिया ।
पा अज्ञपूर्णा मारे क्षोभमके जहाँकी तहाँ धरतीपर बठ गई, और आश्चा इस द
१ 9 आकास्मिक 'गाईस्थिक क्रान्तिका तात्पर्य न समझकर लजा-मय-दुःखसे कॉँप | `
पर । उठी, और उसका चेहरा फक पड़ गया । महेन्द्र मारे गुस्साके मने-ही-सन कहने : ल ।
छमा. “बस, अब नहीं, अपनी ख्रीका भार अपने हाथमें लेना ही पंड़ेगा, नहीं...
1 हा शग्याय हागा 4 2: क | | र ४
ध তো साथ कंतव्य -वड्विका मेल होते ही हवाके साथ भांग लगे गई फिर ८ | ८ )
गया कालेज, कहाँ रही परीक्षा, कहाँ गई मित्रता और कहाँ रहा सामाजिक ` ক ॑
॥
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