आधुनिक हिन्दी साहित्यकार | Adhunik Hindi Sahitykar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साटककार प्रताद/२३ कर लिगत धवध्दवामिनी फ्री सांग करता है। रामगुप्त इतना पतित है कि भधपनी पत्नी को शकराज को मेंद कर देता है। धवस्वाधिती एवं गुप्तकुत की सर्योदा को रक्षा के लिए भस्द्रयुप्त शकराज के डेरे में जाइुर उसका व 8 “देता 26 । इससे वूर्द परित्यितियों के वश चस्थगुप्त पौर धर वेस्वामिती:का प्र व हो छुऋूता है। प्रतः धन्त में दोतो का विदाह कराया गपा हैं । नाटक में दो समस्पाधों का समाधान कराया गया है-क्लीव एवं पतित पति को पत्नी रखने का प्धिकार तहीं ६ यदि राजा प्रयोग्य हो तो राज सिहांसन से उतार देना चाहिए । श्रसाद' के नाटक श्रूयार रस से युक्त बीर रस प्रधान हैं। उनके नाटकों में भ्रेम के विविध रूप मिलते हैं। प्रधिकांश पात्रों मे प्र प्रषम दर्शन पे ही हो जाता है । घरइलेखा-विशाखा, बाजिरा-प्रजातशत्रु, विजया स्कदगुप्त, का्नेंविया-चल्द्रगुप्त प्रौर प्रसका-भिहरण पादि का प्रेम प्रष्म दर्गन में ही होता है । इस प्रहार के प्रेम का আন্ত জন্য दो रूपों णे पण्या जाता है-एक तो पूरं रूप से विकसित होकर दाम्‌- पत्य शूप प्रहे कटं लेता है भौर दूसरा विरोधी रूप ग्रहण कर झ्सफलता, निराशा भ्रोर पर्वाताप के रूप में निःशेष होता है। पहले प्रकार के पघ्स्तगंत भ्रलका-सिहरण, चन्द्रगुप्ध-काने लिया, धवध्वामिती-चन्दगुप्ठ घादि का प्रेम पूर्ण विकास को प्राप्त हो सफल भ्रा है) दूधरे प्रकार का विजपरा रकृंदगुप्त, मल्लिका विष्दकका दवै। एक प्रोर तौसरे प्रकार का निर्मल, वासनारद्वित प्रेम भी 'प्रसादंं के नाटकों में देखते को मिलता है । दल्याणी-अन्द्रगुप्त, देवहना धोर स्कदगुप्त का इसी प्रकार का प्रेम है। “प्रसाद! ने भारतीय सम्कृति को दिख्य बनाने वाले प्रमूल्य रत्नों को विश्मृति के गत से निशालकर हमारे सामने रखा । साथ ही उनमें राष्ट्रीय प्राण! प्रतिष्ठा कर परिचमी सम्यता में चॉधियाये भारतीयों का पथ प्रदर्शन क्रिया । उनकी राष्ट्रीयता में भारत का गोरव है, उसमे शक्ति, शौर्य, क्षमा, सेवा, बलिदान परादि वे समी दिव्य गुर वर्तमान है जिने हमारी सेष्ृनि का पोपणा हमा है ) 'प्रसाद' ने भपने नाटकों के लिए भारतीय इतिहाष दै स्वा युगको धुना । वह हमारे गौरव एवं विदेशियों की प्रजय ॐ कहानी है । 'स्कदगृप्त' मे दर्धुवर्मा कहता है“ तुम्हारे श्वो ने बरवर কযা के बसला दिया है तिः रः विद्या केवत नूशं सता नदी है. तुम्हारे बैरे कै नीचे दबे कटों को स्वोकार करना पड़ेगा, भारतीय दुर्जय वीर है 1 ”” प्रल्का का राष्ट्रीय गीव--/ह्मादि सु ग श्रम से, प्रवुद्ध शुद्ध भारती । स्व॒य प्रभा समुज्ज्वला, स्ववजता पुकारती 1” मातृगुप्त का राष्ट्र का उदवोघन करने वाला गासः-- “हिमालय के भ्रागन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार म ৯ भ< निद्धावर करदें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ॥”




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