आईने - अकबरी | Aaine Akabaree

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aaine Akabaree  by रामलाल पाण्डेय - Ramalal Pandey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामलाल पाण्डेय - Ramalal Pandey

Add Infomation AboutRamalal Pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ११ ] हाथ पांव काट दे )। परन्तु राजा को चाहिये क्रि उसके जीवन का ताना बाना तोड़ने ( प्राण लेने ) का साहस न करे; क्योंकि बुद्धिमान मनोविज्ञानियों ने मानव शरीर को इश्वरीय मन्दिर समझ कर उसको नष्ट करने की आज्ञा नहीं दी है । अतएव न्यायप्रिय राजा के लिए आवश्यक है, कि अपने अनुभव और सूक्ष्म दृष्टि के प्रकाश से, मनुष्यों के पद पहचान कर, काये संचालन करे। और इसी लिए प्राचीन काल के ज्ञानाजेकों ने कहा है कि अग्रशोची, तेजपुञ् शासक हर छोटे आदमी को नौकर नही रखते; ओर जिनका इस कामके लिए स्वीकार कर लेते हैँ, उन नोकरों में से हर एक को नित्य प्रति सामने आने का अधिकारी नहीं समभते ; जिनको सामने आने की आज्ञा हाती है, उनमें से हर एक को अपने बिछोने के पास आने के योग्य नहीं जानते । निकट जाने के अधिकारी व्यक्तियों में से हर एक आमोद-प्रमोद सभा में पदापंण नहीं करने पाता। उपराक्त श्रेणी का प्रत्येक पदस्थ ( आमोद-प्रमोद सभा में जाने वाला ) प्रतिष्ठित सभा में प्रवेश के योग्य नहीं होता । जो व्यक्ति इस सौभाग्य युति सं प्रकाश प्राप्त करते हैं ( महती सभा में जा सकते हैं) उनमें से हर एक गुप्त-समिति में नहीं जा सकता; और इस विज्ञता-समिति का प्रत्येक सौभाग्यवान व्यक्ति, राजकीय विषयों पर विचार करने वाली गुप्न राष्ट्रपरिषद में स्थान नहीं पाता । ईश्वर को धन्यवाद है, कि हमार समय का सम्राट्‌ उपरोक्त उत्तम गुणो स त्सा अलंकृत ই) कि यदि उनका इन सव कासर-इ- दप्रतर कहें तो अत्युक्ति न होगी । वह अपने ज्ञान के प्रकाश से, मनुष्यों के पद पहचान कर उनके पुरुषार्थ का दीपक जलाता है, और बिना किसी प्रकार की कठिनाई के प्रसन्न वदन अपने ज्ञान को कर्म-सोन्दये से विभूषित करता है । किसकी सामथ्य है कि वाक्शक्ति की गुनियां * से, उसके आध्यात्म जगत की अग्नगण्यता एवं पवित्र-- विस्तीणं माग की काये पट़ता का अनुमान कर सके; ओर यदि कुछ हाल वर्णन किया जाय और कोई भेद दशोया जाय तो श्रोता सुनने का बल कहाँ से लाये ओर सममभने की शक्ति किससे मांगे। तो मेरे लिए यही अच्छा है कि में इस प्रयत्न से अपने को हटा लूं और उसके वाह्य जगत की कुछ विलज्ञषणताएं चित्रित करने पर सन्तोप करूँ। अतः में उसके शाला विभाग की नीति, सेना विभाग পাপে ~ -----------~ ~~~ “~ “~ ~~~ = ~~ = ~ ~~~ ~~~ ~ - --------- 5० उनवक 2० ०32०० नम, १ बढ़ई का एक ख़ास ओज़ार जिससे | था। उसने श्रनुयायि्यो को जो चमत्कार वे लकड़ी की ठीक २ नाप करते हैं । दिखलाये थे, उनमें से कुछ का उल्लेख इस २ झकबर दीन इलाही मत का प्रवत्तक | ग्रंथ के ७७ वें आईन में हे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now