पत्थर का लैंप पोस्ट | Pathar Ka Lemp Post

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Pathar Ka Lemp Post by शरद देवड़ा - Sharad Devda

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मास्टरनी बाई १५ “फिर कछ एक नई बात हुई थी । रोज़ साढ़े आठ बजे उउनेबाजे सेठ दीनानाथ कल सातसे कुछ पहले ही नीचे आ बैठे । हाथोंमें अख़बार ओर आँखें गेंटकी ओर । इधर घड़ीने सात बजाये और उधर गेटपर टिकी उनकी आँखें चमक उठीं। हल्के नीले रंगकी साड़ी और वैसा ही ब्लाउज पहने वही चली आ रही थी। कम्पाउण्डमें फैली जाड़ेकी उजली धूपमें कुंदन-सा दमकता मुख बड़ा भछा लग रहा था। वह सधे क़दमोंसे बिना इधर-उधर देखे सीधी चली आ रही थी । सेठ दीनानाथने क्षट अपनी आँखें अख़बारमें गड़ा दीं। उनके बिहूकी धंडकेन सहसा बढ़ गई थी । बह पोटिकोर्में आई । उसकी चप्पलकी आवाज़ उन्हें साफ़ सुनाई दे रही थी, किन्तु उन्हें आँखें उठानेका साहस नहीं हो रहा था। हॉलके गोल दरवाजेमें दाखिल होते समय उसने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की, किन्तु सेठ दीनानाथने देखा नहीं, उनकी आँखें अख़बारमें गड़ी थीं । 'खट-खट की आवाजें सुनकर उन्होंने आँखें सीढ़ीकी ओर उठाई थीं: बंधा हुआ जूडा, वीला ब्लाउज और नीली साड़ीसे होती हुई उनकी दृष्टि नीचे जाकर एडिथोंके पात्त अठक गईं। सीढ़ियाँ चढ़ते समय साड़ीका एडीके पासवाला हिस्सा कुछ उँचा उठ जाता, और दिख जाती पिण्डलियोंकी' दृधिया चिकनाई, मानों नीली झीलमें श्वेत कमल खिला हो, या खिल- खिजाता हो तीछे सभमें शरदू-पूणिमाका चन्द्र! आखिरी सीढ़ी तक वे एकटक देखते रहे । उसके बाद भी कुछ देर तक खाली सीढ़ीकी ओर ही' मन्त्र-मुरधसे ताकते रह थे । ठीक डेढ़ घण्टे बाद सबसे ऊपरी' सीढ़ीपर वह फिर दिखाई पड़ी थी | किन्तु डेढ़ घण्टेके इस समय सेठ दीनानाथकी हालत काफ़ों पतली रही । अखबार पढ़नेकी उन्होंने कई बार चेष्टा की, किन्तु काले अक्षर रह्‌- रह कर दूध-सी इबेत पिण्डलियोंमें बदल जाते। टेलीफोनपर बलालसे आयरनका भाव तेज्ञ सुनकर भी उन्होंने बिना जवाब दिये ही रिसीवर रख




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