इन्द्रजाल | Indrajaal

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Indrajaal by जयशंकरप्रसाद - Jaysankar Prsaad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थी । बेला की गुनगुनाहट बन्द होते ही बँसुरी में गाली उसी तान को ढुहराने लगा । दोनों वन-विहंगम की तरह उस अंधेरे कानन में किछकार ने छगे । आज प्रेम के आवेश ने आवरण हटा दिया था वे नाचने लगे । आज तारों की क्षीण ज्योति में हृदय-से-हृदय मिड़े पूर्ण आवेग में । आज बेला के जीवन में यौवन का और गोली के हृदय में पोरुष का प्रैथम उन्मेप था । किन्तु भूरा भी वहाँ भाने से नहीं रुका । उसके हाथ में भी भया- नक छुरा था । आलिंगन में आबद्ध बेला ने चीत्कार किया । गोली छटक कर दूर जा खड़ा हुआ किन्तु घाव भोछा छगा | बाघ की तरह झपट कर गोली ने दुसरा वार किया । भूरे सम्हाल न सका । फिर तीसरा वार चलाना ही चाहता था कि मेकू ने गोली का हाथ पकड़ लिया । वह नीचे सिर किये खड़ा रहा । मेकू ने कड़क कर कहा-- बेला भूरे से तुझे ब्याह करना ही होगा । यह खेल भच्छा नहीं । उसी क्षण सारी बातें गोली के मस्तक में छाया-चित्र-सी नाच उठीं । उसने छुरा धीरे से गिरा दिया । उसका हाथ छूट गया । जब बेला और मेकू भूरे का हाथ पकड़ कर ले चले तब गोली कहाँ जा रहा है इसका किसी को ध्यान न रहा । रु कंजर परिवार में बेला भूरे की स्त्री मानी जाने लगी । बेला ने भी लिर झुका कर इसे स्वीकार कर लिया । परन्तु उसे पास के जंगल में संध्या के समय जाने से कोई भी रोक न सकता था । उसे जैसे सायं काठ में एक हलका-सा उन्माद हो जाता । भूरे या मेकू भी उसे वहाँ जाने से रोकने में असमथ थे । उसकी इदृड़ता-भरी भाँखों में घोर विरोध नाचने नगता । बरसात का आरम्भ था। गाँव की भोर से पुलिस के पास कोई विरोध की सूचना भी नहीं मिली थी । गाँव वालों की छुरी हैँ सिया और काट- कबाड़ के कितने ही काम बना कर वे लोग पेसे लेते थे । कुछ भन्न यों भी है




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