जैन धर्म | Jain Dharam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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उज्जवल कुमारी - Ujjaval Kumari
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सुशील कुमार - Susheel Kumar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९. कमेबाद १५५- १७३
१. जेन दषेन में कमं का स्थान--करमं के मेद (दरव्यकमं, माव-
कमं) ,क्मबन्ध के दो मुख्य कारण, कर्मो का वर्गीकरण,
कमो का स्वभाव (ज्ञानावरण, द्हानावरण, वेदनीय, मोहनीय,
भ्रायुकमं, नामकर्म, गोत्रकमं, भ्रन्तरायकमं ), कमंक्षय से लाभि,
पुनजेन्म की प्रक्रिया ।
१०. चारित्र ओर नीतिक्ास्त्र १७५-२१७
१. द्विविध ध्म--प्रगार घमं, अनगार धमं, २. व्रतविचार-
व्रत की परिभाषा, ब्रत की आवश्यकता, ३. मूलभूतदोष---
हिसा, भ्रसत्य, श्रदत्तादान, मेथुन, परिग्रह्, ४. गृहस्थ धमं की
पूवं भूमिका--संध का विभाजन, श्रावक पद का अधिकार,
५. गृहस्थ धमे, ६. अणव्रत--म्रहिसाणुत्रत, सत्याणुत्रत, भ्रचौर्या-
णुव्रत, ब्रह्मचर्याणुत्रत, परिग्रह-परिमाण श्रणुत्रत (गृणत्रत प्रौर
शिक्षाव्रत), ७. श्रावक के तीन प्रकार--पाक्षिक, नैष्ठिक,
साधक, ८. जीवन नीति, ६. जीवन का मूलाधार शअहिंसा,
१०. मुनि धमं, ११. पांच महाव्रत, १२. पांच समिति,
१३. तीन गुप्ति, १४, अ्नाचीर्णं, १५. बारह भावनाय,
१६. चार भावना, १७, दशविध घमं, १८. नि्गेन्थों के प्रकार,
१६. श्रावहयक क्रिया, २०. साधना को कठोरता, २१. साधना
का भ्राधार, २२. मृत्युकला (संटेखनात्रत) ।
११. जैनधम को परम्परा २१९--२३०
१. जैन सम्प्रदाय, २. भारत के आध्यात्मिक निर्माण में जैना-
चार्यों का योग, ३. राजाओं का योगदान, ४. मंत्री और
सेनापति, ५. जन धमं का प्रसार ।
१२. जनथमं की विशेषताएँ २३१-२४२
१. जैन धर्म कौ वैज्ञानिकता, २. सृष्टि-रचना, ३. पृथ्वी का
आधार, ४. स्थावर-जीव, ५. लोकोत्तर-ज्ञान, €. গ্গলন্ধান্ন
दृष्टि, ७. अहिसा, ८. अ्वतारवाद €. गुणपूजा, १०. श्रपरि-
ग्रहवाद ।
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