भारतीय मजदूरों की श्र समस्याएँ | Bharatiy Majduron Ki Sram Samasyen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
487
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ भारतीय उद्योगों कौ श्रम-समस्याए
हयो चका था। १८७०-८९ के ददक् मे, भारत में फव्टरियों कौ स्थापना हृद;
और तभी इस देश में संगठन के रूप में मजदूर संघ (श्रमिक संघ) का एक
स्वरूप हमारे सामने आया। १८७५ में सोराबजी सप्रजी के नतृत्व भें कुछ
समाज-सुधारकों और छोकोपकारियों ने बंबई की फंक्टरियों के कामगारों
विशेषकर मजदूर स्त्रियों और बच्चों, की दुरवस्था के विरुद्ध आंदोलन आरभ
किया और प्रुधिकारियों से उनकी कार्यावस््थाओं में सुधार करने को अपील को।
१८७७ में, नागपुर के एम्प्रेस मिल में मजदूरी की दरों के विरुद्ध हड़ताल
होने का उल्लेख मिलता है। इसी शताब्दी के ९वें दशक में भी कई हड़ताले
हुईं । कितु इन हड़तालों का रंगढंग वतमान शताब्दी के पिछले चार दशकों के
औद्योगिक झगड़ों से नितांत भिन्त था । इन आरंभिक हड़तालों के जमाने में यह
देखने मे आया कि कामगार अथवा कामगारों की टोलियां काम छोड़कर अन्य
औद्योगिक केंद्रों की चली गयीं या अपने-अपने गांवों को लौट गयीं । उन्होंने
अपनी शिकायतें दूर कराने के लिए न तो मिछजुलकर कोई ठोस कदम उठाने
की चेष्टा की और न सामूहिक सोौदाकारी को दिशा में ही कोई प्रयत्न किया ।
गजदर संघ आंदोलन (श्रमिक् संघता) की प्रथम आधारशिला---भारत
में संगठित मजदूर (श्रमिक) आंदोलन का जनपदा एतिभ श्यं को
माना जाता है। वह स्वयं एक फंक्टरी के कामगार थे ओर १८८४ में उ्होंने
एक मजदूर आंदोलन का श्रीगणेश करते हुए बंबई में कामगारों का एक सम्ग-
रन बुलाया था जिसका उद्देश्य फंवटरी कमीशन (कारखाना आयोग) के
सामने कामगारों की शिकायतें पेश करना था। यह फंकटरी कमीशन उनी
दिनों नियुक्त हुआ था । कामगारों ने कमीशन को जो ज्ञापन दिया था उसमें
उन्होंने अपनी परिवेदनाओं (शिकायतों) की ओर उसका ध्यान शींनने की
कोशिश की थी । किन्तु जब सरकार ने उन परिवेदनाओं को दूर करने के लिए
कोई प्रभावशाली पग नहीं उठाया तब छोखंडे ने २४ अप्रैंड॒ १८०९० को बंबई
में एक विराट सार्वजनिक सभा बुलायी जिसमें लगभग दस हजार कामगार
उपस्थित थे। इस सभा ने जो अभ्यावेदन (#10107181) स्वीकार किया
उसमें काम के घंटे निश्चित करने, साप्ताहिक छट्टदी और दोपहर को विशामकाल
देने तथा चोट लगने की हानिपूर्ति करने की मांगें सम्मिछित थीं। एस अभ्या-
वेदन के बाद बंबई के मिल-मालिकों ने कामगारों को साप्ताहिक छठी देना
मंजूर कर लिया । इस सफलता से उत्साहित होकर জীন ने बंबई मिल-हैंडस
असोसियेशन (801110४ औ[|-19011098 45500180161) ) का संगठन
किया। वह स्वयं उसके अध्यक्ष चुन गये। उन्होंने श्रमिक वर्ग का पहला
समाचारपत्र निकाला जिसका नाम 'दीनवंधु ' था। इसका ध्येय अधिकारियों
और मालिकों के सामने कामगारों की बेध शिकायतें प्रस्तुत करना था ।
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